Bhagavad Gita: इन स्थितियों में सह लिया अपमान तो बन जाएंगे सर्वश्रेष्ठ, जानिए क्या कहते हैं भगवान श्री कृष्ण?
भगवद गीता अपमान सह लेना विष सह लेना के बराबर बताया गया है. जो इंसान कई परिस्थितियों में सामने वाले का अपमान सह लेता है. वह सफल होने ले लिए तैयार होता है. तीन तो ऐसी परिस्थिति है जहां सदैव इंसान को अपमान सह लेना चाहिए. यहां अपमान सहने से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ बनने लगता है.

Bhagavad Gita: भगवद गीता महज ज्ञान का सागर ही नहीं बल्कि जीवन जीने के लिए भगवान कृष्ण का बताया गया मार्ग भी है. गीता हर रोज हर व्यक्ति को पढ़ने की सलाह दी जाती है. गीता हमें जीवन को धैर्य, क्षमा और सहनशीलता के साथ जीना सिखाता है. कई परिस्थितियों में ये हमें अपमान सहकर सर्वश्रेष्ठ बनना भी सिखाता है. कई पुराणों में भी बताया गया है कि सहनशीलता इंसान का वह गुण है, जिसके बल पर वो पहाड़ को भी झुकने पर मजबूर कर देता है.
भगवद गीता में इसका जिक्र भगवान श्रीकृष्ण कई जगह करते देखे गए हैं. इसमें कहा गया कि कई जगहों पर हमेशा सहनशील होना चाहिए जबकि कई जगहों पर सीमा में सहनशील होना आवश्यक है, क्योंकि अपराध का भी अधिक सहना पाप है. तो आइए हम आपको यहां बताते हैं कि किन जगहों पर अपमान के घुट को पी जाने से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ हो जाता है. यहां पर हम उन तीन परिस्थितियों का जिक्र करेंगे, जहां आपको अपमानित होकर भी शांत रहना है.
माता-पिता का गुस्सा और डांट
माता-पिता सदैव अपने बच्चों का भला ही सोचते हैं. वह कभी नहीं चाहते कि उनके बच्चे गलत रास्ते पर चलें या फिर उनके बच्चों के साथ गलत हो. यही कारण कई बार माता-पिता बच्चों को सार्वजनिक तौर पर भी डांट फटकार देते हैं. ऐसे बच्चों को ये अपमान के समान महसूस होता है लेकिन ये माता-पिता का आशीर्वाद होता है, जिसे अगर आप पी लेंगे तो आप सर्वश्रेष्ठ की गिनती में एक दिन शामिल हो जाएंगे. क्योंकि माता-पिता का अपमान आपको जीवन की परिस्थितियों से लड़ना सिखाता है.
शिक्षक या गुरु से मिला अपमान
शिक्षक या गुरु भी सबसे हितैषी माने जाते हैं. वह कई मौके पर सभी बच्चों के सामने भी अपने प्रिय शिष्य तक को भी डांटते नजर आते हैं. ऐसी परिस्थिति में शिष्य को वह अपमान सह लेना चाहिए. गुरु के कड़वे शब्द जीवन की सच्चाई और कठिन परिस्थिति से लड़ने योग्य हमें बनाते हैं. उनके दिशा-निर्देश और बताए गए मार्ग पर चलने से जीवन में कई कठिनाइयों को पार करने का साहस मिलता है. शिक्षक या गुरु का गुस्सा कभी अपमान नहीं होता है, बल्कि वह भी एक स्नेह का तरीका है. वह अपने शिष्य को पुत्र से बढ़कर आगे बढ़ते देखना चाहते हैं.
भगवान से मिला का अपमान
भगवद गीता के मुताबिक, जो लोग अपमान सहन करते हैं और मंदिर में बहस नहीं करते हैं, उन्हें देवताओं का आशीर्वाद मिलता है. मंदिर में कभी भी गुस्सा या झंझट नहीं करना चाहिए. ये वह समय होता है, जब भगवान आपके धैर्य की परीक्षा ले रहे होते हैं. ऐसे समय में मनुष्य को बिल्कुल शांत अवस्था में रहना चाहिए.
भगवद गीता के मुताबिक, जो जितना अपमान सहता है, वह उतना महान बनता जाता है. वह अपने सहनशीलता के आगे बड़े-बड़े महारथियों को अपने आगे झुकने पर मजबूर कर देता है. सहनशीलता मनुष्य में एक दिन में नहीं आती है. निरंतर प्रयास से आप इसमें सफल हो जाएंगे. आने वाले समय में ये आपके जीवन में अमृत के समान काम करेगा. ये गुण आपको एक दिन सफल और सर्वश्रेष्ठ बना देगा.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. Khabar Podcast इसकी पुष्टि नहीं करता है.)