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धनंजय मुंडे कौन हैं, जिन्होंने सरपंच मर्डर केस के बीच महाराष्ट्र के मंत्री पद से दिया इस्तीफा?

Dhananjay Munde: धनंजय मुंडे ने मंत्री पद से दिया इस्तीफा. लंबे समय से सोच रहे थे इस फैसले को लेकर क्योंकि महाराष्ट्र सरकार में धनंजय मुंडे की स्थिति खराब हो चुकी थी जब से सरपंच की हत्या का आरोप लगाया गया था.

Dhananjay Munde: महाराष्ट्र सरकार मंत्री धनंजय मुंडे को कैबिनेट से देना पड़ा इस्तीफा. दरअसल आज मंगलवार को मुंडे ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया. बताया जा रहा है कि पिछले कई महीनों से राजनीतिक और सामाजिक संगठनों के माध्यम से सरपंच संतोष देशमुख की हत्या के मामले में उनसे जवाब मांगा जा रहा था जिसके चलते ऐसा समय आ गया क्यों उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. 

जब हत्या की शिकार व्यक्ति की चार्टसीट में शामिल तस्वीरों में उनकी तस्वीर वायरल हुई. यह तस्वीर मुंडे के लिए आखिरी झटका तब साबित हुई जब उनके सहयोगी वाल्मिक कराड पर इस हत्या की साजिश रचने का आरोप है. ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) समुदाय से आने वाले मुंडे महायुति गठबंधन, खासतौर पर बीजेपी के लिए एक बोझ बन गए थे. 

उनके वजह से राज्य में मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच पहले से ही चल रहे तनाव और बढ़ रहे थे. अब उनके इस्तीफे से बीजेपी को उम्मीद है कि इस दबाव में थोड़ी कमी आएगी. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस इस्तीफे से महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ सरकार में गठबंधन की नाजुक स्थिति पर क्या असर पड़ेगा. 

कौन हैं धनंजय मुंडे?

49 वर्षिय के धनंजय मुंडे, अजीत पवार के करीबी माने जाते हैं और पिछले 20 सालों से राजनीतिक कैरियर में होने के साथ कई विवादों में शामिल रहे हैं जो उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.बता दें कि धनंजय का जन्म परली के नाथ्रा गांव में हुआ था. उनका राजनीतिक सफर काफी उतार चढ़ाव भरा रहा. 

उनके गुरु चाचा और भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे रहे. उन्होंने शुरुआत में भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष के रूप में काम किया जिसके बाद अच्छे वक्ता माने जाने लगे.चाचा गोपीनाथ का विश्वास जीतकर उन्होंने बीड जिले में उनके राजनीतिक मामलों को संभाला जिसके बाद लोगों को लगने लगा कि गोपीनाथ मुंडे के राजनीतिक उत्तराधिकारी धनंजय बना सकते हैं. 

लेकिन हालात तब बदले जब 2009 में गोपीनाथ मुंडे ने अपनी बेटी को विधानसभा चुनाव के लिए परली सीट से टिकट दिया. बीजेपी ने धनंजय को मनाने के लिए 2010 में विधान परिषद का सदस्य बनाया लेकिन धीरे-धीरे गोपीनाथ और धनंजय के बीच दूरियां बढ़ती चली गई. 

2012 में धनंजय ने बीजेपी छोड़ दिया और अपने पिता पंडित राम मुंडे के साथ एनसीपी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर ली. 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पकंजा मुंडे के खिलाफ सीपी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. हालांकि 5 साल बाद 2019 में उन्होंने पकंजा को 30‌ हजार वोटो से हराया था.

अजित पवार के करीबी

2023 में जब एनसीपी टूटी, तो धनंजय ने अजित पवार का साथ दिया. जिन्होंने महायुति सरकार के साथ गठबंधन कर लिया और 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने परली सीट 1.4 लाख वोटों के अंतर से जीता. धनंजय मुंडे एनसीपी में अजित पवार के सबसे भरोसेमंद नेताओं में से एक रहे हैं.

2014 में जब वह विधानसभा चुनाव हार गए थे, तब भी अजित पवार ने उन्हें विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनवाया. 2019 में महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट के दौरान जब अजित पवार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश की तब भी धनंजय उनके साथ थे. 

हालांकि यह सरकार सिर्फ तीन दिन ही चली, और इसके बाद उद्धव ठाकरे की सरकार बनी. बावजूद इसके, अजित पवार के भरोसेमंद होने के कारण धनंजय को उद्धव सरकार में मंत्री पद दे दिया गया.धनंजय ने हमेशा अजित पवार का समर्थन किया और जब शरद पवार ने अजित पवार के खिलाफ बगावत की, तो उन्होंने शरद पवार पर हमला करते हुए कहा, 1978 से उनका (शरद पवार का) राजनीतिक करियर सिर्फ धोखा और विश्वासघात से भरा हुआ है.'  

धनंजय मुंडे की विवादित छवि

धनंजय मुंडे का राजनीतिक कैरियर हमेशा विवादों से गिर रहा क्योंकि जिले के लोगों को लगता था कि धनंजय पूरे क्षेत्र को अपना जागीर समझते हैं. वहीं भाजपा विधायक सुरेश ढस ने सरपंच हत्या मामले में उनके खिलाफ अभियान चलाया जो कभी उनके करीब हुआ करते थे. 

2017 में सुरेश‌ को एनसीपी से निकाल दिया गया था जो बीड के 6 में से ज्यादा भाजपा विधायक धनंजय के खिलाफ थे और सार्वजनिक रूप से कह चुके थे कि उन्हें बीड जिले का अभिभावक मंत्री नहीं बनाना उनकी निजी जिंदगी भी‌‌ विवादों से घिरी रही. 

2021 में एक महिला ने उन पर बलात्कार का आरोप लगाया था जिसके बाद उस महिला ने यह आरोप वापस ले लिया. इतना ही नहीं उनकी दूसरी पत्नी ने भी उन पर आरोप लगाए. जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा.

हालांकि इन विवादों के बावजूद भी धनंजय मुंडे के राजनीतिक स्थिति मजबूत रही लेकिन सरपंच हत्या मामले के चलते उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. अब देखना होगा कि यह फैसला उनके राजनीतिक कैरियर को किस दिशा में ले जाता है.

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