असम का झुमर डांस क्या है, जिस आदिवासी नृत्य कार्यक्रम में पीएम मोदी हुए शामिल? जानिए इसके इतिहास से लेकर सब कुछ
असम की सुंदर संस्कृति किसे नहीं लुभाती,वही इस बीच असम के चाय बागानों की समृद्ध संस्कृति को मनाने के लिए पारंपरिक झूमर नृत्य का भव्य आयोजन किया जा रहा है. बताया जा रहा है कि इस कार्यक्रम में सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे.

असम की सुंदर संस्कृति किसे नहीं लुभाती,वही इस बीच असम के चाय बागानों की समृद्ध संस्कृति को मनाने के लिए पारंपरिक झूमर नृत्य का भव्य आयोजन किया जा रहा है. बताया जा रहा है कि इस कार्यक्रम में सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. इस विशेष प्रस्तुति में 8,500 से अधिक नर्तक भाग लेंगे और इसे असम के 800 से अधिक चाय बागानों में सीधा प्रसारित किया जाएगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस उत्सव का आनंद ले सकें.
गौरतलब है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर के नेतृत्व में 60 से अधिक विदेशी राजनयिकों का एक प्रतिनिधिमंडल भी इस भव्य प्रस्तुति को देखने पहुंचेगा.जो लोग प्रस्तुति देखने नहीं जा सकते वे इसे टेलीविजन स्क्रीन और एलईडी डिस्प्ले के माध्यम से चाय बागानों में देख सकेंगे जिससे पूरी चाय बागान समुदाय इस उत्सव का हिस्सा बन सकेगा.
असम मुख्यमंत्री ने बताइए झूमर नृत्य की अहमियत
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने झूमर नृत्य की महत्ता को दोहराते हुए कहा कि यह असम की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और चाय जनजाति समुदाय की भावनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है. हाल ही में कुछ लोगों ने इसकी प्रामाणिकता पर सवाल उठाए थे, जिसका खंडन करते हुए उन्होंने कहा था कि झूमर असम की संस्कृति की पहचान है.
सरमा ने यह भी घोषणा की कि झूमर नृत्य को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की योजना बनाई जा रही है और जल्द ही दिल्ली में भी इसका प्रदर्शन किया जाएगा. मुख्य कार्यक्रम से पहले रविवार को इंदिरा गांधी एथलेटिक स्टेडियम में इसकी फुल ड्रेस रिहर्सल हुई जिसमें मुख्यमंत्री सरमा और अन्य मंत्री उपस्थित रहे और कलाकारों का उत्साह बढ़ाया.
झूमर नृत्य क्या है?
झूमर एक पारंपरिक लोक नृत्य है जिसे असम और पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा जैसे पड़ोसी राज्यों की चाय जनजाति समुदाय के लोग करते हैं. यह नृत्य चाय बागान मजदूरों के जीवन का हिस्सा है और आमतौर पर त्योहारों, फसल कटाई और सामाजिक आयोजनों के दौरान किया जाता है.
झूमर डांस का इतिहास
झूमर नृत्य की उत्पत्ति मुख्य रूप से संथाल, उरांव, मुंडा और अन्य आदिवासी समुदायों से मानी जाती है. ब्रिटिश शासन के दौरान जब इन समुदायों को असम के चाय बागानों में काम करने के लिए लाया गया तब उनके साथ उनकी सांस्कृतिक धरोहर भी आई. इस नृत्य को 'झूमर' नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसमें नर्तक झूमते हुए धीमे और लयबद्ध तरीके से आगे बढ़ते हैं.
नृत्य की विशेषताएँ
1. संगीत और वाद्ययंत्र: झूमर नृत्य के दौरान पारंपरिक लोक संगीत बजाया जाता है जिसमें मादल, ढोल, नगाड़ा और बांसुरी प्रमुख वाद्ययंत्र होते हैं.
2.शारीरिक मुद्राएँ: इसमें नर्तक सहज और लयबद्ध तरीके से झूमते हुए घूमते हैं जो समूह की एकता और सामूहिक भावना को दर्शाता है.
3.परिधान: महिलाएँ रंगीन साड़ी पहनती हैं और पारंपरिक आभूषणों से सजी होती हैं जबकि पुरुष धोती-कुर्ता पहनकर नृत्य में भाग लेते हैं.
समकालीन समय में झूमर डांस
वर्तमान समय में झूमर नृत्य न केवल असम बल्कि संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध हो रहा है. विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों और सरकारी कार्यक्रमों में इसे प्रस्तुत किया जाता है. पीएम मोदी की इस कार्यक्रम में उपस्थिति ने इस नृत्य को राष्ट्रीय स्तर पर और भी अधिक पहचान दिलाई है.
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