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सभी देश एक-दूसरे से मिलकर क्यों नहीं रह पाते? कमी, असमानता और गलतफहमी बनती हैं युद्ध की जड़

दुनिया के सभी देश शांति और विकास चाहते हैं, फिर भी आपसी मतभेद और टकराव खत्म नहीं होते. राजनीति विशेषज्ञों के मुताबिक, देशों के बीच संघर्ष की तीन मुख्य वजहें हैं कमी (Scarcity), असमानता (Uneven Distribution) और धारणा (Perception). अगर देश इन तीन कारकों को समझ लें और भरोसे पर काम करें, तो वैश्विक शांति की राह आसान हो सकती है.

दुनिया के लगभग सभी देश एक ही मकसद रखते हैं अपने नागरिकों के लिए शांति, विकास और समृद्धि. फिर भी, देशों के बीच मतभेद, प्रतिस्पर्धा और कभी-कभी युद्ध जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं. सवाल उठता है जब सबका लक्ष्य एक जैसा है, तो टकराव क्यों होता है?

राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञों के अनुसार, देशों के बीच तनाव और संघर्ष की तीन मुख्य वजहें होती हैं कमी (Scarcity), असमान वितरण (Uneven Distribution) और धारणा (Perception). ये तीनों कारक मिलकर तय करते हैं कि देश एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे या टकराव की ओर बढ़ेंगे.

1. कमी (Scarcity) – जब संसाधन सीमित हों

कमी का मतलब है — जब ज़रूरतें ज़्यादा हों लेकिन संसाधन सीमित हों. खाद्य पदार्थ, पानी, तेल और जमीन जैसे संसाधनों की कमी कई बार देशों को कठिन फैसले लेने पर मजबूर कर देती है.

उदाहरण:

अफ्रीका की नाइल नदी 11 देशों और 30 करोड़ से अधिक लोगों के लिए जीवनरेखा है, लेकिन पानी की कमी के कारण मिस्र (Egypt) और इथियोपिया (Ethiopia) जैसे देश अक्सर नदी के उपयोग को लेकर विवाद में पड़ जाते हैं. जब किसी संसाधन की मांग ज्यादा और उपलब्धता कम हो, तो सहयोग की जगह प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है.

2. असमान वितरण (Uneven Distribution) – जब सबके पास बराबर साधन नहीं होते

हर देश की ताकत, तकनीक और प्राकृतिक संसाधन एक जैसे नहीं होते. इस असमानता के कारण कुछ देश ताकतवर बन जाते हैं, जबकि कुछ को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है.

उदाहरण:

2009 में अमेरिका की वैश्विक शक्ति का मुकाबला करने के लिए ब्रिक्स (BRICS) नाम का समूह बना, जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं. यह समूह दिखाता है कि कैसे देशों का एक गठबंधन संतुलन बनाने के लिए बन सकता है, ताकि कोई एक देश पूरी दुनिया पर हावी न हो सके.

3. धारणा (Perception) – जब समझ में अंतर हो

कई बार टकराव सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि देश एक-दूसरे की नीयत को गलत समझ लेते हैं. एक देश अपने बचाव के लिए हथियार बढ़ाता है, लेकिन दूसरा देश इसे खतरे के रूप में देख लेता है.

उदाहरण:

1970 के दशक में भारत ने अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु क्षमता (nuclear capability) विकसित की. लेकिन पाकिस्तान ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा माना और जवाब में खुद भी परमाणु हथियार बना लिए. इस तरह, गलत धारणा ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया.

जब दोस्त बन जाते हैं प्रतिद्वंदी

एक प्रोफेसर ने छात्रों को एक सिमुलेशन गेम खिलाया, जिसमें हर ग्रुप को सीमित संसाधन दिए गए. कुछ समूहों के पास ज़्यादा अंक (resources) थे, कुछ के पास कम. कमी और असमानता के कारण, छात्रों को यह तय करना था कि वे सहयोग करें या प्रतिस्पर्धा.

शुरू में दो दोस्त एनेबेल और मॉर्गन साथ काम करना चाहते थे. लेकिन जब संसाधनों की होड़ और अविश्वास बढ़ा, तो दोनों के समूह एक-दूसरे से भिड़ गए. अंत में, दोनों के रिश्ते बिगड़ गए जैसे देशों के बीच भी सहयोग की जगह अविश्वास बढ़ जाता है.

दोस्ती से दुश्मनी तक

यह उदाहरण दिखाता है कि चाहे देश आपस में दोस्त हों या साझा लक्ष्य रखते हों. अगर संसाधनों की कमी, असमानता और गलत धारणा बीच में आ जाए तो सहयोग कभी भी प्रतिस्पर्धा या युद्ध में बदल सकता है. हर देश सुरक्षा चाहता है, पर जब दूसरे की कार्रवाई खतरे जैसी लगती है, तो विश्वास की जगह डर बढ़ जाता है. इसी डर से टकराव जन्म लेता है.

सीख क्या है?

हर देश शांति चाहता है, लेकिन दुनिया में संसाधन सीमित हैं, ताकत असमान है और सोच अलग-अलग. अगर देश इन तीनों बातों को समझें और आपसी भरोसा बनाएं तो शायद युद्धों की जगह सहयोग और स्थायी शांति की संभावना बढ़ सके.

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