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देखिए नेपाल में बैन के बाद क्या हुआ? देशभर में पोर्नोग्राफी बैन की मांग खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में पोर्नोग्राफी बैन की मांग वाली याचिका पर त्वरित सुनवाई से इनकार कर दिया और हाल ही में नेपाल में पोर्न बैन के बाद भड़के Gen Z विरोध प्रदर्शनों का हवाला दिया. कोर्ट ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर जल्दबाज़ी में फैसला देना उचित नहीं होगा. याचिका में सरकार से राष्ट्रीय नीति बनाने, पोर्न एक्सेस पर रोक लगाने और सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील सामग्री देखने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी.

Supreme Court: देशभर में पोर्नोग्राफी पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल त्वरित सुनवाई से इनकार कर दिया है. सोमवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पोर्न बैन जैसे संवेदनशील मुद्दे पर जल्दबाज़ी में कोई फैसला देना ठीक नहीं होगा, क्योंकि इससे सामाजिक तनाव पैदा हो सकता है. अदालत ने हाल ही में नेपाल में पोर्न बैन के बाद भड़के Gen Z विरोध प्रदर्शनों का उदाहरण भी दिया.

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की जगह कार्यरत न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'देखिए नेपाल में प्रतिबंध लगाने के बाद क्या हुआ. इस समय हम इस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं.' हालांकि, अदालत ने याचिका को पूरी तरह खारिज नहीं किया और इसे चार सप्ताह बाद फिर से सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. ध्यान देने वाली बात है कि CJI गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

याचिका में क्या मांग की गई थी?

  • दायर की गई याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी कि:
  • देश में पोर्नोग्राफी तक पहुंच को रोकने के लिए राष्ट्रीय नीति बनाई जाए
  • सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील सामग्री के प्रदर्शन पर रोक लगाई जाए

याचिका में कहा गया कि डिजिटलाइजेशन के दौर में शिक्षित या अशिक्षित—हर कोई इंटरनेट से जुड़ा है, और अश्लील सामग्री महज़ एक क्लिक की दूरी पर उपलब्ध है. याचिका के अनुसार, भारत सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि इंटरनेट पर अरबों पोर्न साइट्स मौजूद हैं और यह चिंता का विषय है.

कोविड काल और बच्चों पर प्रभाव को लेकर चिंता

याचिका में कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों द्वारा तकनीक के अत्यधिक उपयोग का मुद्दा भी उठाया गया. इसमें कहा गया कि ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चों के हाथ में मोबाइल फ़ोन और टैबलेट आ गए, लेकिन उन पर पोर्नोग्राफी देखने से रोकने के लिए कोई ठोस नियंत्रण प्रणाली मौजूद नहीं थी.

हालांकि पेरेंटल कंट्रोल टूल्स उपलब्ध हैं, लेकिन याचिका में तर्क दिया गया कि यह पर्याप्त और प्रभावी नहीं हैं.

याचिकाकर्ता ने कहा कि 13 से 18 वर्ष के किशोरों के मानसिक विकास पर इसका गंभीर और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ रहा है, और समाज भी इससे प्रभावित हो रहा है.

20 करोड़ पोर्न क्लिप्स के प्रसार का दावा

याचिका में पेश किए गए आंकड़े भी चौंकाने वाले थे। इसमें कहा गया कि भारत में 20 करोड़ से अधिक अश्लील वीडियो क्लिप्स घूम रही हैं. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि सरकार के पास आईटी एक्ट की धारा 69A के तहत पोर्नोग्राफी सामग्री को ब्लॉक करने का अधिकार है, लेकिन इसके बावजूद कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए गए.

नेपाल में पोर्न बैन के बाद क्या हुआ था?

सुप्रीम कोर्ट ने जिस घटना का ज़िक्र किया, उसमें नेपाल सरकार द्वारा पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने के बाद देशभर में युवाओं, खासकर Gen Z, ने व्यापक प्रदर्शन किए थे. सोशल मीडिया पर इसका विरोध तेज़ी से फैला और सरकार को कड़े कदम वापस लेने को लेकर दबाव का सामना करना पड़ा.

भारत के लिए भी यह एक बड़ा संकेत है कि पोर्न बैन जैसे विषय पर कानूनी, सामाजिक, डिजिटल और व्यवहारिक पक्ष को ध्यान में रखकर ही कदम उठाना होगा, वरना हालात बिगड़ सकते हैं.

अगला कदम क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित विषय पर तुरंत सुनवाई से इंकार जरूर किया है, लेकिन मामला खत्म नहीं हुआ है. यह मामला चार सप्ताह बाद दोबारा अदालत में आएगा, जहां इस पर आगे बहस होगी. माना जा रहा है कि अदालत व्यापक परामर्श, विशेषज्ञों के सुझाव और सरकार की राय लेने के बाद ही आगे कोई दिशा तय कर सकती है.

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