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शुभांशु शुक्ला की वापसी, स्पेस से लौटने पर क्यों रीकंडीशनिंग होती है जरूरी?

शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम 18 दिन तक ISS में रही. स्पेस से लौटने के बाद शरीर को धरती की गुरुत्वाकर्षण से फिर से सामंजस्य बैठाने में समय लगता है. स्पेस से लौटने के बाद विशेष मेडिकल चेकअप और रीकंडीशनिंग प्रोग्राम शुरू होता है.

Shubhanshu Shukla Space Return: 18 दिन, 288 पृथ्वी के चक्कर और एक ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा के बाद भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अब धरती पर लौट रहे हैं. 'स्पेस ड्रैगन ग्रेस' कैप्सूल से मंगलवार दोपहर करीब 3 बजे कैलिफोर्निया तट पर उनका लैंडिंग तय है लेकिन असली चुनौती अब शुरू होती है धरती की गुरुत्वाकर्षण में वापस ढलना.

क्या हुआ अंतरिक्ष में शुभांशु शुक्ला के साथ?

अंतरिक्ष में पहुंचने के कुछ शुरुआती दिन शुक्ला के लिए सहज नहीं थे। खुद उन्होंने माना कि माइक्रोग्रैविटी (microgravity) के वातावरण में शरीर का संतुलन और सामान्य गतिविधियां बेहद कठिन थीं. 

उन्होंने कहा, 'शुरू के कुछ दिन बहुत अजीब थे… अब जब वापसी की घड़ी है तो उम्मीद है कि मुझे लौटते समय उतनी परेशानी न हो जितनी जाते समय हुई थी.'

धरती पर लौटते ही सबसे पहले क्या होता है?

जैसे ही कैप्सूल समुद्र में लैंड करता है:

स्पेसX रिकवरी टीम कैप्सूल से सभी अंतरिक्ष यात्रियों को बाहर निकालती है.

यहीं पर पहली मेडिकल जांच होती है.

इसके बाद हेलीकॉप्टर से उन्हें धरती पर लाया जाता है.

यह मेडिकल जांच बेहद जरूरी होती है क्योंकि अंतरिक्ष में बिना गुरुत्वाकर्षण के जीवन शरीर पर खासा असर डालता है.

क्यों होती है रीकंडीशनिंग ज़रूरी?

संतुलन की समस्या: स्पेस में रहने से दिमाग 'inner ear' की signals को नजरअंदाज़ करना सीख जाता है.

चलने में परेशानी: माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे चलने-फिरने में दिक्कत होती है.

रीढ़ की हड्डी पर असर: करीब 50% अंतरिक्ष यात्रियों को डिस्क हर्नियेशन हो जाता है.

फ्रैक्चर और मांसपेशियों में खिंचाव: लौटने के 1 साल में 92% स्पेस यात्रियों को ऐसी कोई चोट होती है.

NASA के अनुसार, इस रीकंडीशनिंग में व्‍यायाम, संतुलन और फ्लेक्सिबिलिटी बढ़ाने की ट्रेनिंग शामिल होती है.

माइक्रोग्रैविटी से शरीर को क्यों होता है असर?

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण न होने से शरीर का बैलेंस बिगड़ता है क्योंकि ब्रेन और कान (inner ear) में तालमेल नहीं बैठता. इससे शुरुआती दिनों में motion sickness होती है. माइक्रोग्रैविटी में शरीर inner ear की signals को नजरअंदाज करना सीखता है, जिससे धरती पर लौटकर फिर से खड़े होना और चलना मुश्किल हो जाता है.

शुभांशु शुक्ला का अनुभव

शुक्ला ने ISS से बातचीत में कहा, 'यहां कोई गुरुत्वाकर्षण नहीं है, तो पानी पीना, चलना, सोना सब कुछ चुनौती है. कुछ दिन लगते हैं, लेकिन फिर सब नॉर्मल हो जाता है.'

उनके इस अनुभव से यह साबित होता है कि अंतरिक्ष यात्रा सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक धैर्य की भी परीक्षा है.

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