अब डायरेक्ट परीक्षा देकर जज नहीं बन सकते! सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उम्मीदवारों को लगा झटका
Supreme Court Verdict On Judicial Service: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि नए लॉ ग्रेजुएट न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते हैं, साथ ही प्रवेश स्तर के पदों पर आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम तीन साल का कानूनी अभ्यास अनिवार्य कर दिया है. इस फैसले का न्यायिक सेवा के उम्मीदवारों पर प्रभाव पड़ेगा.

Supreme Court Verdict On Judicial Service: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जज बनने के लिए तीन साल के प्रैक्टिस को अनिवार्य कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कोर्स पूरा कर परीक्षा की तैयारी करने वाले लाखों अभ्यार्थी को तगड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने मंगलवार (20 मई) को यह शर्त बहाल कर दी कि न्यायिक सेवा में प्रवेश स्तर के पदों के लिए आवेदन करने हेतु उम्मीदवार के लिए एडवोकेट के रूप में न्यूनतम 3 साल का प्रैक्टिस आवश्यक है.
प्रैक्टिस की अवधि प्रोविजनल एनरोलमेंट की तारीख से मानी जाएगी. लॉ क्लर्क के रूप में अनुभव को भी 3 साल की प्रैक्टिस शर्त में गिना जाएगा. अभ्यार्थी को एडवोकेट के रूप में किसी ऐसे एडवोकेट के साथ काम करना होगा, जो 10 साल का अनुभव प्राप्त कर चुके हैं, तभी प्राप्त प्रमाण-पत्र वैलिड होगा.
फैसले में क्या कहा गया?
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि नये विधि स्नातकों को एक दिन भी प्रैक्टिस किये बिना न्यायिक सेवा में प्रवेश की अनुमति देने से समस्याएं पैदा हो गई हैं. फैसले में कहा गया, 'पिछले 20 सालों से, बिना एक भी दिन प्रैक्टिस किए, नए लॉ ग्रेजुएशन को न्यायिक अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाता रहा है, जो एक सफल अनुभव नहीं रहा है. ऐसे नए लॉ ग्रेजुएशन के कारण कई समस्याएं पैदा हुई हैं.'
पुरानी हो रही भर्ती पर नहीं होगा लागू
हालांकि, ये नया नियम आज से पहले हाई कोर्ट द्वारा शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया पर लागू नहीं होगी. दूसरे शब्दों में कहे तो यह शर्त केवल भविष्य की भर्तियों पर लागू होगी.
2002 में खत्म कर दिया था प्रैक्टिस सिस्टम
2002 में सुप्रीम कोर्ट ने न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता को खत्म कर दिया था, जिससे नए लॉ ग्रेजुएट्स को मुंसिफ-मजिस्ट्रेट पदों के लिए आवेदन करने की अनुमति मिल गई थी. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर किए गए थे जिसमें केवल वकीलों के लिए ही शर्त को बहाल करने की मांग की गई थी. कई हाई कोर्ट ने भी न्यूनतम प्रैक्टिस की आवश्यकता को बहाल करने के कदम का समर्थन किया.