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Abhay Mudra: क्या है भगवान शिव का अभय मुद्रा? जानिए इसका अर्थ और लाभ

Abhay Mudra: सावन आते के साथ ही अभय मुद्रा काफी चर्चा में है. इस मुद्रा के जरिए भक्त अपने भय और अशांति को अपने जीवन से दूर करते हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव इस मुद्रा के जरिए अपने भक्तों को अभय वरदान भी देते हैं.

Abhay Mudra: सावन का महीना आने वाला है. ये महीना शिव भक्तों का माना जाता है, क्योंकि भगवान भोलेनाथ को ये महीना बेहद प्रिय है. श्रद्धालुओं में अभी से ही इसे लेकर खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. इस बीच भगवान शिव के अभय मुद्रा की भी इन दिनों खूब चर्चा हुई है. हालंकि, इस मुद्रा की खास बातें और ये होता कैसे है? इसकी जानकारी काफी कम लोगों को है. माना जाता है कि ये मुद्रा अनंत कालों से चला आ रहा है. भगवान शिव की अभय मुद्रा के स्वरूप में पूजा करने से भक्तों पर उनकी विशेष कृपा बनी रहती है. इसे बेहद कल्याणकारी और सभी संकटों का नाश करने वाला बताया गया है. तो आइए हम आपको सबसे पहले बताते हैं कि आखिर अभय मुद्रा है क्या? 

क्या है भगवान शिव का अभय मुद्रा?

सबसे पहले जानते हैं कि इस मुद्रा को किया कैसे जाता है. इसमें दाहिना हाथ कंधे की ऊंचाई तक उठा रहता है और हथेली को बाहर की तरफ और उंगलियों को सीधा रखते हुए दिखाया जाता है, जबकि बायां हाथ गोद में रहता है. भगवान को जब भी आप इस मुद्रा में देखेंगे तो आशीर्वाद स्वरूप ही उन्हें दिखाया गया है. इसकी कई तस्वीरें आपको इंटरनेट पर भी मिल जाएगी. गुरु नानकदेव, ईसा मसीह, भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी को भी आप इसी मुद्रा में देख सकते हैं. ये मुद्रा निर्भयता को भी दर्शाने का काम करता है. माना जाता है कि ये मुद्रा लोगों को अभय बनाता है. उनमें अच्छे कर्म करने वाले को किसी प्रकार का भय नहीं रहता है. 

भगवान शिव के अभय मुद्रा का अर्थ

संस्कृत में अभय का अर्थ निर्भयता है, यानी कि जो किसी से नहीं डरता हो. इस मुद्रा को मन और तन में सुरक्षा, शांति देने वाला माना जाता है. इसके साथ ही ये लोगों के मन में किसी भी प्रकार के डर को खत्म करता है. इस मुद्रा में भोलेनाथ की पूजा करने से भक्तों पर उनकी विशेष कृपा बरसती है. माना जाता है कि जब भगवान शिव ध्यान में लीन रहते हैं तो कई बार इस मुद्रा का प्रयोग करते हुए लंबे काल के लिए बैठे रहते हैं. 

अभय मुद्रा का के लाभ

अभय मुद्रा को कला के साथ योग और ध्यान में भी उपयोग किया जाता है. तमिलनाडु की 11वीं सदी की चोल काल की नटराज की मूर्तियों में भी इस मुद्रा को दर्शाया गया है. इस मुद्रा को करने वाले भक्त जीवन से सभी प्रकार की परेशानी दूर होकर शांति को प्राप्त करते हैं. छात्र भी इस मुद्रा का उपयोग अपने ध्यान को केंद्रित कर सकते हैं. इसे बुराई और अज्ञानता पर विजय प्राप्त करने वाला साधन भी बताया गया है. 

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