कांताजेव मंदिर का क्या है इतिहास, जिसे बांग्लादेश के 20 टका के नोट पर किया गया चित्रित?
Kantajew Temple On Bangladesh Note: बांग्लादेश के नए 20 टका के नोट पर ऐतिहासिक कांतानगर मंदिर की तस्वीर छपी है, जिससे इसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में मान्यता मिली है. लेकिन इसी मंदिर की ज़मीन पर मस्जिद निर्माण की कोशिश ने विवाद खड़ा कर दिया है. हिंदू संगठनों ने इसे धार्मिक अतिक्रमण बताते हुए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है.

Kantajew Temple On Bangladesh Note: बांग्लादेश के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों में शुमार कांतानगर मंदिर (Kantanagar Temple) या कांताजेव मंदिर को एक नई पहचान बांग्लादेश के धरोहर के तौर पर मिली है, क्योंकि बांग्लादेश के जारी किए गए नए नोट में इस मंदिर का चित्र दिखाया गया है. 20 टका के नोट पर कांताजेव मंदिर की तस्वीर दिखाई गई है.
वहीं 20 टका के नोट के पीछे चित्रित पहाड़पुर मठ बौद्ध विरासत को दर्शाता है और दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण प्राचीन मठों में से एक माना जाता है, जिसका निर्माण 8वीं शताब्दी में पाल वंश के तहत हुआ था. आइए यहां कांताजेव मंदिर के इतिहास को जानते हैं.
कांतानगर मंदिर का गौरवशाली इतिहास
कांतानगर मंदिर बांग्लादेश के दिनाजपुर जिले के कांतानगर गांव में स्थित एक 18वीं सदी का प्रसिद्ध हिंदू मंदिर हैं. इसे कांताजेव मंदिर, कांताजी मंदिर या कांताज्यू मंदिर भी कहा जाता है. इस मंदिर का निर्माण 1704 ईस्वी में महाराजा प्राण नाथ ने शुरू करवाया था, जिसे उनके पुत्र राजा रामनाथ ने 1722 ईस्वी में पूर्ण करवाया।
यह मंदिर भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी को समर्पित है और विशेष रूप से राधा-कृष्ण भक्ति परंपरा से जुड़े लोगों के बीच पूजनीय है. इसकी वास्तुकला बांग्लादेश की मिट्टी की नक्काशी (Terracotta Art) की अनुपम मिसाल है. मंदिर के ऊपर कभी नौ गुम्बदें हुआ करती थीं, जो 1897 के भीषण भूकंप में नष्ट हो गईं.
मंदिर परिसर में मस्जिद निर्माण की कोशिश
हाल ही में इस प्राचीन मंदिर की जमीन पर मस्जिद की नींव रखे जाने और स्थानीय अवामी लीग सांसद द्वारा उसके उद्घाटन को लेकर भारी विवाद उत्पन्न हो गया है. रिपोर्ट के अनुसार, यह कोई पहली बार नहीं है जब मंदिर की ज़मीन पर कब्जे की कोशिश की गई हो — इससे पहले भी चंद्रनाथ मंदिर को निशाना बनाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं.
हिंदू संगठनों का विरोध और चेतावनी
'हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद' ने इस घटनाक्रम को धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ और ऐतिहासिक धरोहर पर हमला करार दिया है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि मंदिर परिसर में किसी भी तरह की धार्मिक अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जाएगी. संगठन ने यह भी मांग की है कि सरकार इस मुद्दे में तुरंत हस्तक्षेप करे और मंदिर भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित करे.
सांप्रदायिक सद्भाव पर खतरा
बांग्लादेश में पहले भी अल्पसंख्यक समुदायों के धार्मिक स्थलों पर हमले और कब्जे की घटनाएं सामने आती रही हैं. इस मामले ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बांग्लादेश में धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक विरासत सुरक्षित हैं? यदि देश की प्राचीन हिंदू धरोहरों को मिटाया गया या अतिक्रमण का शिकार बनाया गया, तो इसका असर समाज के सामूहिक विश्वास और सद्भाव पर गहरा होगा.
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