टाइगर अभी ज़िंदा है! बिहार चुनाव में नीतीश कुमार कैसे बने सबसे बड़े विनर?
बिहार में NDA की ऐतिहासिक जीत के बाद नितीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लौटने को तैयार हैं और यह उनका दसवां कार्यकाल हो सकता है. लगभग 20 साल के राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद नितीश आज भी राज्य की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक हैं. दोस्ती, दुश्मनी और गठबंधन बदलने के बावजूद उनका करिश्मा बिहार के मतदाताओं को लगातार आकर्षित करता आ रहा है.
Nitish Kumar NDA Victory: बिहार की राजनीति में कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं—मौत, टैक्स… और मुख्यमंत्री के रूप में नितीश कुमार. एक बार फिर NDA की ऐतिहासिक बढ़त के साथ नितीश सुर्खियों के केंद्र में हैं और संकेत साफ़ हैं कि वे दसवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने जा रहे हैं.
74 वर्षीय नितीश, जिन्हें विरोधी अक्सर 'पलटू राम' कहकर तंज कसते हैं, असल में भारतीय राजनीति के सबसे चतुर, धीरजवान और टिकाऊ नेताओं में गिने जाते हैं. लगभग दो दशक की सत्ता, कई राजनीतिक गठबंधन और अनगिनत उतार-चढ़ाव—यह कहानी सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि एक राजनीतिक सर्वाइवर की गाथा है.
#WATCH | Poster featuring CM Nitish Kumar that reads "Tiger abhi zinda hain" put up outside JDU office in Patna, Bihar #BiharElection2025 pic.twitter.com/zZIggXeyJ5
इस विस्तृत विश्लेषण में पढ़िए—कैसे एक इंजीनियरिंग ग्रेजुएट बना बिहार का सबसे ताकतवर नेता, कैसे रिश्ते बने और टूटे और क्यों आज भी उनका करिश्मा बिहार के मतदाताओं को आकर्षित करता है.
शुरुआती जिंदगी और राजनीति में कदम
1 मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में जन्मे नितीश कुमार का घराना साधारण था, लेकिन राजनीतिक संस्कारों से भरा हुआ. पिता कविराज राम लक्षण सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे और आयुर्वेद के चिकित्सक, जबकि मां परमेेश्वरी देवी गृहिणी थीं.
1972 में उन्होंने NIT पटना (तब कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग) से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पास की और एक साल बाद 1973 में शिक्षिका मंजू सिन्हा से शादी की. दंपत्ति के बेटे का नाम रखा गया निशांत।
जेपी आंदोलन से मिली राजनीतिक पहचान
नितीश की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से हुई, जहां उनके साथी थे लालू प्रसाद यादव. उस दौर में नितीश, लालू को 'बड़े भाई' कहा करते थे. 1974 में MISA के तहत और 1975 की इमरजेंसी के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
जेपी आंदोलन से निकले नितीश पहले जनता पार्टी के साथ आए और 1977 के चुनाव में खड़े हुए, लेकिन खुद चुनाव हार गए. 1985 में पहली बार विधानसभा पहुंचे और 1989 में लोकसभा सदस्य बने. यहां से उनकी दिल्ली की राजनीति में एंट्री हुई और जल्द ही वे कृषि मंत्री बने.
लालू से दोस्ती टूटी, नई पार्टी बनाई
90 के दशक की शुरुआत में लालू और नितीश की राजनीतिक राहें अलग होनी शुरू हुईं. 1994 में नितीश ने लालू के खिलाफ मोर्चा लिया और जॉर्ज फ़र्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई. 1997 में लालू ने घोटालों के बाद अपना रास्ता अलग किया और RJD बनाई.
वाजपेयी सरकार (1998–2004) में नितीश ने कई अहम मंत्रालय संभाले—रेलवे, कृषि, परिवहन. 1999 के गैसाल ट्रेन हादसे के बाद उन्होंने नैतिक आधार पर इस्तीफा भी दे दिया.
बिहार की सत्ता का लंबा सफर: एक-से-एक राजनीतिक उलटफेर
2000: पहली बार मुख्यमंत्री—सिर्फ 7 दिन.
2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 7 दिन में बहुमत न साबित कर पाने पर इस्तीफा देना पड़ा.
2005: 'जंगल राज' के खिलाफ प्रचार—बड़ी वापसी.
2005 में BJP–JDU गठबंधन के साथ नितीश मजबूती से लौटे.
2010 में तो उन्होंने RJD को लगभग मिटा दिया. यह चुनाव माना जाता है नितीश का स्वर्णिम युग.
2013: मोदी के नाम पर गठबंधन तोड़ा
जब BJP ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया, नितीश ने NDA छोड़ दिया. उन्होंने खुद कहा, 'नरेंद्र मोदी जैसे विवादित चेहरे को PM उम्मीदवार बनाना गलत है.' उन्होंने 'संगठन-मुक्त भारत' की बात भी कही थी.
2015: लालू के साथ फिर हाथ—महागठबंधन की ऐतिहासिक जीत
सबको चौंकाते हुए नितीश ने RJD और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और भारी जीत हासिल की.
2017: लालू से रिश्ता टूटा—उसी दिन NDA में वापसी
तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार आरोपों के बाद उन्होंने महागठबंधन तोड़ दिया और उसी दिन NDA में लौटकर फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी ले ली. लालू ने खुलेआम कहा—'नितीश ने धोखा दिया.'
2019–2020: NDA के साथ चुनाव, फिर 2024 में दोबारा पलटी
2019 और 2020 में नितीश NDA के साथ CM रहे. इसके बाद वे फिर महागठबंधन में गए, INDIA ब्लॉक की राजनीति की धुरी बने. लेकिन जब उन्हें गठबंधन में मनचाही भूमिका नहीं मिली, 2024 में वे फिर NDA में लौट आए. यह उनका नौवां कार्यकाल था.
NDA की बड़ी जीत, नितीश का करिश्मा बरकरार
आज जब बिहार में NDA की जीत तय है, पोस्टर लगे हैं - 'टाइगर अभी ज़िंदा है' और तस्वीर है नितीश कुमार की.
विश्लेषक कहते हैं कि 2010 जैसी जीत दोहराना आसान नहीं, लेकिन नितीश ने यह कर दिखाया.
राजनीतिक विश्लेषक एम. के. चौधरी का बयान, '2010 की जीत नितीश का शिखर थी. अब वैसी सफलता दोहराना उनकी स्वीकार्यता को साबित करता है.'
'पलटू राम' या राजनीति के सबसे चतुर खिलाड़ी?
उन पर चाहे जितने तंज कसें, लेकिन यह सच है कि नितीश ने बिहार को 'जंगल राज' की छवि से बाहर निकालने में अहम भूमिका निभाई. उनकी दूसरी पहचान 'सुशासन बाबू' यही साबित करती है.
दो दशक की राजनीति में जितनी बार उन्होंने पाला बदला, उतनी ही बार वे सत्ता में लौटे—यह बताता है कि वे सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि रणनीति के उस्ताद हैं.
अब सबकी नजरें नितीश पर
NDA की भारी जीत के साथ सवाल फिर वही है...
नितीश आगे क्या करेंगे?
क्या वे NDA को स्थिरता देंगे या फिर कोई और चौंकाने वाला कदम उठाएंगे?
इतना तय है कि बिहार की राजनीति में नितीश कुमार का प्रभाव अभी भी उतना ही मजबूत है और खेल अभी बाकी है.
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