बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन शुरू, विपक्ष ही नहीं NDA के अंदर भी इसे लेकर टेंशन, जानिए क्यों?
बिहार में चुनाव आयोग की ओर से चलाया जा रहा मतदाता सूची संशोधन अभियान सियासी बहस का कारण बन गया है. एनडीए इसे ज़रूरी कदम बता रहा है, जबकि भीतर ही भीतर डर है कि कहीं उनका ही वोट बैंक ना कट जाए. विपक्ष इसे गरीबों और वंचितों को वोटिंग से वंचित करने की ‘साजिश’ करार दे रहा है.

Bihar Assembly Election 2025: बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग (EC) ने विशेष तीव्र मतदाता सूची संशोधन (Special Intensive Revision of Electoral Rolls) का अभियान शुरू किया है.
एनडीए (BJP, JDU, LJP) इस अभियान का सार्वजनिक रूप से समर्थन कर रही है, लेकिन अंदरूनी तौर पर गठबंधन के कुछ नेताओं में इसको लेकर चिंता है. उनका कहना है कि इतने कम समय में यह प्रक्रिया पूरी करना मुश्किल होगा और इससे कई असली मतदाता सूची से बाहर हो सकते हैं.
क्या है मामला?
25 जून से 25 जुलाई 2025 तक चुनाव आयोग बिहार में मतदाता सूची का विशेष रिवीजन कर रहा है. इस दौरान हर मतदाता को एक फॉर्म भरना होगा. खासकर 1987 के बाद जन्मे और 2003 के बाद मतदाता सूची में जुड़े लोगों को नागरिकता प्रमाण के तौर पर दस्तावेज देना होगा, जैसे जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, जाति प्रमाणपत्र या शैक्षणिक प्रमाणपत्र.
NDA में क्यों है चिंता?
Indian Express की रिपोर्ट में बताया गया कि भाजपा, जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के कई नेताओं ने चिंता जताई कि बिहार जैसे राज्य में, जहां गरीबी, अशिक्षा और दस्तावेजों की कमी आम है, वहां कई गरीब और वंचित तबकों के लोग जरूरी कागजात नहीं दे पाएंगे.
एक LJP (RV) नेता ने कहा, 'गरीब मतदाता खुद दस्तावेज़ जुटाने के लिए समय और पैसा खर्च नहीं करेगा. अंततः पार्टी कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी होगी कि वे अपने वोट बैंक को वोट देने के अधिकार से वंचित न होने दें.'
विपक्ष का आरोप: यह एक 'साजिश' है
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह पूरा अभियान एक साजिश है ताकि दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और गरीबों को वोट देने से रोका जा सके. उनके अनुसार, बिहार में जन्म पंजीकरण की ऐतिहासिक स्थिति बेहद खराब रही है और ऐसे में इतने सख्त दस्तावेजों की मांग से लाखों असली मतदाता बाहर हो सकते हैं.
जन्म पंजीकरण का बुरा हाल
2000 में: बिहार में सिर्फ 1.19 लाख जन्म पंजीकृत हुए थे (कुल अनुमानित जन्मों का 3.7%)
2007 में: 7.13 लाख जन्म पंजीकृत हुए (यह अनुमानित संख्या का एक चौथाई था)
2001 से 2011: जनसंख्या में 2.11 करोड़ की बढ़ोतरी हुई, लेकिन सिर्फ 73.91 लाख जन्म दर्ज हुए.
इससे यह साफ होता है कि जन्म प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेज अधिकांश गरीबों के पास नहीं हैं.
सबसे ज्यादा असर किन पर पड़ेगा?
एक JDU नेता ने बताया कि सबसे ज्यादा असर अति पिछड़ी जातियों पर पड़ेगा, जो गरीब भी हैं और राजनीतिक रूप से बहुत संगठित भी नहीं. वे न तो दलितों की तरह आरक्षण की सुरक्षा में हैं, न ही यादवों जैसी राजनीतिक ताकत रखते हैं.
राजनीतिक दल क्यों चिंतित हैं?
राजनीतिक दलों को डर है कि उनका वोट बैंक कट सकता है. इसलिए सभी पार्टियों ने बूथ लेवल एजेंट तैनात कर दिए हैं ताकि लोग दस्तावेज़ तैयार करवा सकें और मतदाता सूची में बने रहें.
एक वरिष्ठ JDU नेता ने कहा, '243 सीटों के लिए बूथ स्तर की कमेटियों की समीक्षा हो रही है. हमें समय से पहले BLAs (Booth Level Agents) तैयार रखने होंगे.'
भाजपा के भीतर भी मतभेद
जहां एक ओर भाजपा का एक वरिष्ठ नेता मानता है कि चुनाव आयोग का यह कदम बोगस वोटरों को हटाने के लिए जरूरी है, वहीं दूसरा नेता कहता है कि भले ही राजनीतिक दल प्रयास करें, फिर भी कुछ असली मतदाता छूट सकते हैं यहां तक कि सवर्ण गरीब भी.
JDU और LJP (RV) का आधिकारिक रुख
JDU प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, '5 करोड़ वोटरों को कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. EBC को जाति प्रमाणपत्र मिलते हैं. यह प्रक्रिया बोगस वोटरों को हटाने और असली वोटरों को बनाए रखने के लिए है.'
LJP (RV) के उपाध्यक्ष AK बाजपेयी ने कहा, 'अब तक उठाए गए सभी सवाल सिर्फ आशंकाएं हैं. अगर प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी होती है, तब सवाल उठाना चाहिए. हमारी प्राथमिकता है कि प्रक्रिया सही हो और अगर कुछ असली वोटर छूटते हैं, तो हम सुधार करवाएंगे.'
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