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बिहार चुनाव से पहले नेताओं के सिरमौर क्यों बन रहे महाराणा प्रताप? जानिए ये चुनावी हथियार कितना कारगार और क्या है राज्य में राजपूतों का समीकरण

Bihar Assembly Election 2025: बिहार चुनाव से पहले राजपूत वोट साधने की होड़ मची हुई है. सभी दलों ने राजपूत प्रतीकों की सियासत पर जोर दे दिया है. राजनीतिक दलों ने महाराणा प्रताप और कुंवर सिंह की विरासत को अपना चुनावी हथियार बनाने की रेस लगी है. बिहार में राजपूतों की आबादी करीब 3.45% है, लेकिन लगभग 140 विधानसभा सीटों पर इनका असर है. वर्तमान में 29 राजपूत विधायक और 6 सांसद हैं. ऐतिहासिक रूप से भी बिहार में राजपूत मुख्यमंत्री रह चुके हैं, लेकिन पिछले कई दशकों से इनकी राजनीतिक पकड़ कमजोर हुई है.

Bihar Assembly Election 2025: बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक दलों में राजपूत वोट बैंक को साधने की ज़ोरदार होड़ मची है। सत्तारूढ़ जदयू-बीजेपी गठबंधन हो या विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल (RJD), सभी दल राजपूत समाज के प्रतीकों को मनाने में जुट गए हैं। इसमें खासतौर पर महाराणा प्रताप और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर कुंवर सिंह को केंद्र में रखा गया है.

अप्रैल महीने से ही तीनों प्रमुख दलों ने महाराणा प्रताप और कुंवर सिंह की जयंती और पुण्यतिथि पर कार्यक्रम आयोजित कर राजपूत समुदाय को साधने की कोशिश की है. 23 अप्रैल को पटना में वीर कुंवर सिंह की पुण्यतिथि पर बीजेपी और आरजेडी दोनों ने कार्यक्रम आयोजित किए. बीजेपी की ओर से सारण के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी मुख्य अतिथि रहे. वहीं आरजेडी नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने सारण विकास मंच (SVM) के कार्यक्रम में हिस्सा लिया. 

'अब सीढ़ी नहीं बनेंगे' पूर्व केंद्रीय मंत्री का इशारा

राजपूत समुदाय से आने वाले राजीव प्रताप रूड़ी ने कार्यक्रम में कहा, 'हम (राजपूत) लंबे समय से दूसरों की सफलता की सीढ़ी बनते आए हैं. अब हमें एकजुट होकर अपनी ताकत दिखानी होगी.' हालांकि उन्होंने किसी पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन उनका बयान NDA सरकार की ओर इशारा करता है, जिसमें बिहार से आठ मंत्री हैं, मगर एक भी राजपूत चेहरा नहीं है. खुद राजीव प्रताप रूड़ी, राधा मोहन सिंह और जनार्दन सिंह सिग्रीवाल जैसे सीनियर नेता मंत्री नहीं बनाए गए.

कभी राजपूतों के विरोध में बोलने वाले तेजस्वी वोटों के लिए लालायित

कभी राजपूतों की ओर कटाक्ष करने वाले लालू यादव के बेटे और RJD नेता तेजस्वी यादव भी राजपूत वोट को लुभाने में लगे हैं, लेकिन ये तो वक्त ही बताएगा कि उनपर राजपूत भरोसा करते हैं या नहीं. उन्होंने एक समय कहा था कि जब लालू यादव का राज था तो ग़रीब सीना तान के बाबू साहब के सामने चलते थे. इस बयान ने बवाल मचा दिया था और कई दिग्गज नेता समेत राजपूत समाज के लोगों ने इसका विरोध किया था.

अब समय ये है कि सत्ता के लिए सालों से संघर्ष कर रही RJD की सत्ता वापसी के लिए तेजस्वी यादव को भी राजपूतों को साधने की गंभीरता दिखानी पड़ी. उन्होंने कोलकाता से आकर पटना का दौरा किया और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस तक रद्द कर दी.

उन्होंने कहा, 'हमें एक मौका दीजिए, कुंवर सिंह की ऐसी बड़ी मूर्ति बनाएंगे कि उसका घोड़ा ही 80 फीट ऊंचा होगा… हम राजपूतों पर पूरा भरोसा करते हैं.' तेजस्वी ने पिछली गलतियों को भी सुधारने की कोशिश की. लोकसभा चुनाव के दौरान उनके बयान 'बाबू को ठंडा कर देंगे' को राजपूतों ने अपमान के रूप में लिया था. बाद में उन्होंने सफाई दी कि उनका आशय भ्रष्ट ‘बाबुओं’ (अफसरों) से था, न कि राजपूत समाज से.

सारण विकास मंच का RJD को समर्थन

SVM के संयोजक शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा, 'हम तेजस्वी को अगला मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। बीजेपी-जेडीयू ने राजपूतों को हमेशा सेकंड क्लास ट्रीटमेंट दिया है. अब हम साइड रोल नहीं निभाएंगे.' SVM की पकड़ सारण, भोजपुर, कैमूर और रोहतास जैसे जिलों में मानी जाती है.

जदयू ने महाराणा प्रताप को बताया ‘सामाजिक समरसता’ का प्रतीक

जदयू नेता संजय सिंह ने पटना में महाराणा प्रताप की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया. उन्होंने कहा, 'मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मेरी मांग पर पटना में महाराणा प्रताप की प्रतिमा लगवाई. प्रताप की सेना में हर जाति के लोग थे, इसलिए वे सामाजिक समरसता के प्रतीक हैं. दुख की बात है कि कुछ लोग उन्हें केवल जाति या धर्म के चश्मे से देख रहे हैं.'

बिहार के चुनावी आंकड़ों में राजपूत प्रभाव

1. बिहार में कुल 10.5% ऊंची जातियां हैं, जिनमें राजपूतों की आबादी लगभग 3.45% है.

2. 243 सीटों में 90 सीटों पर राजपूत वोटर 40,000 से अधिक हैं, और 50 सीटों पर 30,000 से ज़्यादा.

3. इनकी अहमियत सारण, भोजपुर, कैमूर, रोहतास, औरंगाबाद और बांका जैसे जिलों में ज़्यादा है.

वर्तमान में राजपूत नेताओं की स्थिति

1. राजपूत विधायक (MLAs): 29 (BJP-19, RJD-6, JDU-2, कांग्रेस-1, निर्दलीय-1)

2. राजपूत मंत्री: 4 (BJP-2, JDU-1, निर्दलीय-1)

3. राजपूत सांसद (MPs): 6 (BJP-3, JDU-1, LJP-1, RJD-1)

कभी था बिहार की राजनीति पर राजपूतों का दबदबा

आज भले ही राजपूतों की पकड़ कमजोर हो गई हो, लेकिन आज़ादी के बाद कुछ समय तक बिहार की राजनीति में उनकी अहम भूमिका रही है.

1. अनुग्रह नारायण सिंह: बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री और संविधान सभा के सदस्य

2. हरिहर सिंह: 1969 में चार महीने के लिए मुख्यमंत्री

3. चंद्रशेखर सिंह: 1983-85 तक मुख्यमंत्री

4. सत्येंद्र नारायण सिंह (अनुग्रह नारायण के पुत्र): 1989 में नौ महीने के लिए मुख्यमंत्री

मगर इसके बाद से राजपूत समाज को कोई बड़ी सत्ता नहीं मिली. 

बिहार चुनाव 2025 में पासा पलट सकते हैं राजपूत 

बिहार की राजनीति में राजपूत वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं. यही वजह है कि सभी प्रमुख दल अब राजपूत प्रतीकों और भावनाओं को केंद्र में रखकर अपनी राजनीति को धार दे रहे हैं. लेकिन क्या यह रणनीति कामयाब होगी या फिर यह सिर्फ चुनावी दिखावा बनकर रह जाएगा, इसका जवाब 2025 के चुनावी नतीजे ही देंगे.

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