जानबूझकर बेरोजगारी, गुजारा भत्ता पाने के लिए साजिश... दिल्ली हाईकोर्ट ने कैसे पकड़ी महिला की चालबाजी? याचिका किया खारिज
Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला की गुजारा भत्ता की याचिका खारिज की. महिला ने खुद को जानबूझकर बेरोजगार दिखाने की कोशिश की. कोर्ट ने महिला को भरण-पोषण पर निर्भर रहने के बजाय नौकरी करने और खुद पर निर्भर रहने की बात कही.

Delhi High Court: भारत में कानूनी तौर पर कई ऐसी संभावनाएं होती है, जिसका फायदा उठाने की भरपूर कोशिश की जाती है. ये एक साजिश का हिस्सा भी होता है. दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महिला की गुजारा भत्ता की याचिका खारिज कर दी. जबकि वह कमाने और में सक्षम थी.
महिला काफी पढ़ी लिखी और नौकरी में भी अनुभवी है. उसे आसानी से कोई भी नौकरी मिल सकती है. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि उसे अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने के लिए नौकरी से नहीं बचना चाहिए.
कोर्ट ने महिला को आत्मनिर्भर रहने की दी सलाह
मामले की अध्यक्षता करने वाले जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता को सांसारिक मामलों की व्यापक जानकारी है और उसकी अच्छी शैक्षणिक पृष्ठभूमि है. सीमित अवसरों वाली महिलाओं (जो भरण-पोषण के लिए अपने पति पर निर्भर रहती हैं) के विपरीत आत्मनिर्भर है. कोर्ट ने महिला को भरण-पोषण पर निर्भर रहने के बजाय नौकरी करने और खुद पर निर्भर रहने की बात कही.
मामले में देखा गया कि याचिकाकर्ता महिला ऑस्ट्रेलिया से मास्टर डिग्री और दुबई से पेशेवर अनुभवी है. इसके बाद भी वह अंतरिम भरण-पोषण की मांग कर रही थी. इसके लिए उसने नाटक भी किया. वह अपने आप को पूरी तरह से बेरोजगार दिखाने के लिए पहले अपने माता-पिता और फिर अपने मामा के साथ रहने लगी.
महिला ने की खुद को बेरोजगार दिखाने की कोशिश
कोर्ट को महिला की इस हरकत को देखते हुए यह समझने में देऱ नहीं लगी कि महिला ये सब क्यों कर रही है. वह कोर्ट को यह समझाने का प्रयास करती प्रतीत हुईं कि वह कमाने में असमर्थ है.
मामले की जटिलता को बढ़ाते हुए याचिकाकर्ता और उसकी मां के बीच व्हाट्सएप पर हुई बातचीत जांच के दायरे में आई. इस मैसेज में मां ने कथित तौर पर अपनी बेटी को सलाह दी कि नौकरी करने से उसके गुजारा भत्ते के दावे कमज़ोर हो सकते हैं. हालांकि इस बातचीत की वैधता को मुकदमे में सत्यापित किया जाना है, लेकिन न्यायालय ने इसे जानबूझकर बेरोज़गारी का सबूत माना.
भरण-पोषण याचिका दायर किए जाने से पहले हुई इस बातचीत के समय से पता चलता है कि भरण-पोषण के लिए अपने मामले को मज़बूत करने के लिए बेरोज़गार रहने का जानबूझकर प्रयास किया गया था.
अंत में कोर्ट ने निर्धारित किया कि मामले में अंतरिम भरण-पोषण दिए जाने की ज़रूरत नहीं है. इसने फैमिली कोर्ट के पहले के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की याचिका को खारिज कर दिया, जिसने दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 125 के तहत उसे भरण-पोषण देने से इनकार कर दिया था.