Climate Change से बढ़ रहा है चावल में ज़हर! 2050 तक एशियाई देशों में कैंसर का बढ़ेगा ख़तरा
Rice Cancer Risk: दुनिया के सबसे लोकप्रिय अनाज चावल में कैंसर फैलाने वाला आर्सेनिक खतरनाक स्तर तक बढ़ने की आशंका जताई गई है. 2050 तक आर्सेनिक का स्तर इतना बढ़ सकता है कि इससे कैंसर, दिल की बीमारी, डायबिटीज़ और कई घातक बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा.

Rice Cancer Risk: चावल हर किसी की जिंदगी का हिस्सा है, लेकिन आज जिस रिपोर्ट के बारे में हम आपसे बात करने जा रहे हैं, वह आपको हैरान कर देगा. जो चावल आपको ज़िंदगी देता है, वही अब मौत का कारण बन सकता है. एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चावल में आर्सेनिक (arsenic) की मात्रा बढ़ती जा रही है, जो आने वाले दशकों में लाखों लोगों की सेहत को खतरे में डाल सकती है.
The Lancet Planetary Health जर्नल में प्रकाशित कोलंबिया यूनिवर्सिटी की इस रिसर्च में बताया गया कि अगर धरती का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ता है और CO₂ स्तर में इजाफा होता है, तो मिट्टी की रासायनिक संरचना बदल जाती है. इसका असर ये होता है कि मिट्टी और पानी में मौजूद इनऑर्गेनिक आर्सेनिक चावल के दानों में ज्यादा मात्रा में समा जाता है.
2050 तक कैंसर के करोड़ों मामले संभव
यह वही चावल है जो दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के भारत, बांग्लादेश, नेपाल, वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे देशों में... करोड़ों लोगों की थाली में रोज़ शामिल होता है. इस रिसर्च में 10 सालों तक 28 प्रकार के चावल पर अध्ययन किया गया और सात एशियाई देशों में अनुमानित स्वास्थ्य प्रभावों का मॉडल तैयार किया गया.
कैसे पड़ेगा दुनिया पर इसका असर?
- 2050 तक चीन में अकेले 1.34 करोड़ कैंसर के मामले हो सकते हैं जो चावल में बढ़ते आर्सेनिक की वजह से होंगे.
- फेफड़े, मूत्राशय और त्वचा का कैंसर सबसे ज्यादा देखने को मिल सकता है.
- इसके अलावा दिल की बीमारी, डायबिटीज़, प्रेगनेंसी से जुड़ी समस्याएं और नर्वस सिस्टम पर असर भी सामने आ सकता है.
समाधान क्या है?
- ऐसे चावल की किस्में विकसित की जाएं जो कम आर्सेनिक सोखें.
- धान की खेती के तरीकों में बदलाव लाया जाए, जैसे बेहतर मिट्टी प्रबंधन.
- पब्लिक हेल्थ प्रोग्राम्स के ज़रिए जागरूकता और बचाव के उपाय फैलाए जाएं.
चावल है ज़रूरी, पर सेहत भी है ज़िम्मेदारी
रोज़ की थाली में दिखने वाला ये सफेद चावल अब एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य चिंता बनता जा रहा है। ऐसे में सरकारों, वैज्ञानिकों और किसानों को मिलकर उपाय ढूंढने होंगे ताकि पोषण तो मिले, लेकिन ज़हर नहीं.
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