शराबी पिता, अनाथालय में छोड़ा, बनी सबसे हिट हीरोइन, 38 साल की उम्र में मौत, कौन हैं वो अदाकारा?
Meena Kumari Real Life Story: मीना कुमारी की कहानी एक दर्दभरी कहानी है. जब उनका जन्म हुआ, तो उनके पिता ने उन्हें अनाथालय में छोड़ दिया, लेकिन कुछ घंटों बाद उन्हें वापस ले आए. गरीबी के कारण मीना ने छोटी उम्र में फिल्मों में काम शुरू किया और धीरे-धीरे वो 1950 के दशक की सुपरस्टार बन गईं. शादी टूटने के बाद मीना अकेलेपन और शराब में डूबती गईं.

Meena Kumari Real Life Story: कहते हैं कि हर सफलता के पीछे दर्द छिपा होता है. आज हम आपको एक ऐसी ही बॉलीवुड अदाकारा का कहानी बताने जा रहे हैं, जिसका महज सफलता के पहले ही नहीं बल्कि उसके बाद की अपनी जिंदगी दर्द में जिया. दर्द ऐसी कि कहानी सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे.
साल 1933 मुंबई के एक अस्पताल में एक बच्ची ने जन्म लिया. लेकिन जैसे ही यह खबर उसके पिता तक पहुंची, उनके चेहरे पर मुस्कान नहीं बल्कि मायूसी छा गई. वह तो बेटे की आस लगाए बैठे थे. गुस्से और निराशा में उन्होंने नवजात बेटी को एक अनाथालय में छोड़ दिया.
पसीजा पिता का दिल और उठा ले गए बेटी को
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. कुछ ही घंटों में, उस पिता का दिल पसीज गया. बिना अपनी बेटी को देखे चैन नहीं आया. वो दौड़े-दौड़े अनाथालय पहुंचे और उस मासूम को अपनी बाहों में भरकर घर ले आए. उन्हें क्या पता था कि ये वही बच्ची एक दिन हिंदुस्तानी सिनेमा की सबसे चमकती हुई 'चांदनी' बनेगी — मीना कुमारी.
गरीबी, संघर्ष और बचपन का बोझ
मीना कुमारी का बचपन सपनों से नहीं, ज़िम्मेदारियों से भरा था. उनका परिवार इतना गरीब था कि कई बार दो वक्त की रोटी भी मुश्किल हो जाती. ऐसे में मीना का बचपन खेल और पढ़ाई में नहीं, कमाई में बीतने लगा.
बहुत छोटी उम्र में ही उन्हें फिल्मों में काम करने का मौका मिला. कैमरे के सामने खड़ी ये मासूम बच्ची धीरे-धीरे लोगों के दिलों में बसती गई. वो कभी किसी की बहन बनी, कभी बेटी — लेकिन हर किरदार में जान डाल देती.
हीरोइन बनी लेकिन दिल से रही बच्ची
साल 1946 में फिल्म 'बच्चों का खेल' में उन्होंने बतौर लीड एक्ट्रेस डेब्यू किया. फिर तो मानो सिलसिला चल पड़ा. एक के बाद एक हिट फिल्में, शोहरत की ऊंचाइयां, तालियों की गूंज और अपने जमाने की सबसे खूबसूरत अदाकाराओं में शुमार — यही बन गई मीना कुमारी की पहचान...
सच्ची जिंदगी में दर्द का सिलसिला
लेकिन पर्दे पर मुस्कराती इस लड़की के दिल में एक स्थायी उदासी थी — जो कभी दिखाई नहीं देती थी, बस महसूस होती थी. मीना कुमारी को यूं ही 'Tragedy Queen' नहीं कहा जाता. उनकी रील लाइफ जितनी इमोशनल थी, रीयल लाइफ उससे कहीं ज़्यादा दर्द भरी.
साल 1952 में उन्होंने मशहूर फिल्ममेकर कमाल अमरोही से शादी की. लेकिन ये रिश्ता प्यार का नहीं, शर्तों का बंधन बन गया. कमाल अमरोही ने शादी से पहले मीना के सामने कई शर्तें रखीं:
- वो किसी और डायरेक्टर की फिल्म में काम नहीं करेंगी.
- पर्दे पर ‘गंभीर’ और ‘ढकी’ रहेंगी — मतलब कोई रिवीलिंग कपड़े नहीं.
- शाम 6 बजे से पहले घर लौट आना होगा.
- उनके मेकअप रूम में कोई मर्द दाखिल नहीं होगा.
मीना ने हर शर्त मुस्कुराते हुए मान ली, शायद ये सोचकर कि प्यार में कुर्बानी ही तो दी जाती है. लेकिन धीरे-धीरे ये शर्तें जंजीर बनती गईं.
बंद दरवाज़ों के पीछे की पीड़ा
शादी के बाद मीना कुमारी का जीवन पूरी तरह बदल गया. वो ना खुलकर हंस सकती थीं, ना जी भर के रो सकती थीं. उन्हें प्यार तो मिला लेकिन इज़्ज़त नहीं. उनकी मां बनने की ख्वाहिश भी तीन बार टूट गई — कहा जाता है कि इसका जिम्मेदार भी कमाल अमरोही ही थे. रोज़-रोज़ के झगड़ों और अकेलेपन से तंग आकर, साल 1964 में दोनों अलग हो गए.
शराब, तन्हाई और ढलती हुई रौशनी
अकेलापन मीना कुमारी को धीरे-धीरे शराब की लत की ओर ले गया। दिल का दर्द अब लिवर को बीमार करने लगा. इलाज के लिए उन्हें लंदन और स्विट्ज़रलैंड तक जाना पड़ा, लेकिन उनकी हालत बिगड़ती रही. इसी दौरान उन्होंने अपना ड्रीम प्रोजेक्ट 'पाकीज़ा' पूरा किया — एक ऐसी फिल्म जो आज भी क्लासिक मानी जाती है.
'पाकीज़ा' आई लेकिन चली गईं मीना
साल 1972 में पाकीज़ा रिलीज़ हुई. फिल्म सुपरहिट हुई. थिएटरों में ताली बज रही थी, लोग रो रहे थे, मीना कुमारी की अदाकारी पर दुनिया दीवानी हो गई. लेकिन इसी फिल्म की रिलीज़ के महज़ तीन हफ्ते बाद, 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी इस दुनिया को अलविदा कह गईं. उनकी उम्र सिर्फ 38 साल थी.
और पीछे रह गई... एक अधूरी कहानी
मीना कुमारी सिर्फ एक अदाकारा नहीं थीं। वो एक शायर थीं, एक गायिका थीं, एक कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर थीं — और सबसे बढ़कर, एक टूटा हुआ दिल थीं. आज जब भी कोई पाकीज़ा, साहिब बीबी और गुलाम, बेग़म जान या फुटपाथ जैसी फिल्मों को देखता है तो सिर्फ एक्ट्रेस नहीं, एक औरत की चुप्पी, पीड़ा और संवेदना को महसूस करता है.