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अब अच्छा या तब अच्छा, सुख और सुविधाओं से सुकून कितना बेहतर?

जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है. हर चीज का तौर तरीका बदल गया. दुनिया मेट्रो की रफ्तार के साथ आगे बढ़ने चाहती है. लेकिन क्या इस जिंदगी में सुकून है या फिर रात को चैन की नींद है. ये सवाल कई दिनों से जेहन में चल रहे थे तो सोचा अपने पाठकों के साथ इस पर विस्तार से चर्चा करूं. 

इंसान का सुकून आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में बहुत हद तक खो गया सा लगता है. इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग ज्यादा समय अपने काम और समस्याओं में उलझे रहते हैं. समाज और टेक्नोलॉजी के विकास के साथ, हम मानसिक शांति और संतुलन को भूल गए हैं.

जबकि, अगर पहले की बात करें सुकून अक्सर छोटे-छोटे पलों में छिपा होता है, जैसे परिवार के साथ समय बिताना, प्रकृति के करीब जाना, या खुद के साथ शांतिपूर्वक वक्त बिताना. शायद हमें उन चीज़ों को फिर से ढूंढने की जरूरत है जो सुकून और मानसिक शांति दे सकती हैं. 

लेकिन अब खुशियों का पैमाना बदलता दिख रहा है. लोग भौतिक वस्तुओं और भोग विलासिता में खुशी ढूंढ रहे हैं. इस चक्कर में छल और प्रपंच ने उनका दिमाग खराब कर दिया है. वो इन सबमें इतने उलझ चुके हैं कि कुछ पाने के लिए वो कुछ भी कर रहे हैं. जिससे उनका मन हमेशा विचलित रहता है. 

सुकून कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही छिपा होता है. जब हम अपने मन की शांति को प्राथमिकता देते हैं, जब हम अपने रिश्तों को समझते हैं, और जब हम खुद को समय देते हैं. जब इंसान अपनी उम्मीदों और तनावों से थोड़ी दूरी बना लेता है, तब उसे असल सुकून महसूस होता है. 

पहले लोग खुश रहने का कारण शायद लोगों की जीवन का सरल होना और मुश्किलों का कम होना था. तब जिंदगी में इतनी रफ्तार नहीं थी और लोग आमतौर पर छोटे, स्थिर समुदायों में रहते थे, जहां रिश्ते मजबूत और गहरे होते थे. प्रकृति के साथ उनका गहरा संबंध था, और उनकी ज़िंदगी में कम इच्छाएं और अपेक्षाएं थीं.

आज के मुकाबले तकनीकी विकास कम था, जिससे तनाव, चिंता और मानसिक दबाव कम होते थे. लोग एक-दूसरे के साथ समय बिताते थे, अपने काम में संतुष्ट होते थे और जीवन की छोटी खुशियों को महत्व देते थे. अब जबकि हमारी ज़िंदगी और समाज जटिल हो गया है, हमें उसी सरलता और संतुलन को फिर से ढूंढने की जरूरत है जो पहले लोग अनुभव करते थे. 

हालांकि, हम इस भागदौड़ और बढ़ते कंपीटिशन के बीच भी अगर खुद के मन को स्थिर रखें और मैनेज करना सीख जाए तो शायद ये फिर से मुमकिन होगा. इसमें लिए हमे वर्क के साथ साथ माइंड मैनेजमेंट की भी जरूरत है.