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क्या सुप्रीम कोर्ट जजों के अधिक बोलने पर लगा पाएगा लगाम? कर्नाटक से जुड़ा है मामला, जानिए 100 साल पहले के अंग्रेज जज की कहानी

Suprme Court to HC Judge: सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अनावश्यक टिप्पणी को लेकर फटकार लगाई थी. इन सबके बीच लोगों के मन में एक सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट देश भर के जजों के इस तरह की टिप्पणियों लगाम लगाने में कितना सफल हो पाएगा?

Suprme Court to HC Judge: कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अनावश्यक टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई थी और न्यायाधीशों के लिए संयम की सीमाओं में रहने की अपील की थी. दरअसल, कर्नाटक हाई कोर्ट के जज वेदव्यसचार श्रीशनंदा ने एक मामले की सुनवाई कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने बंगलूरू के एक मुस्लिम बहुल इलाके को पाकिस्तान का हिस्सा बता दिया था. हालांकि, उनके जज होने को लेकर अधिक हंगामा नहीं हुआ, लेकिन आम आदमी और नेताओं के इस बयान की खूब निंदा होती और इसे अनैतिक बताया जाता. 

इन सबके बीच सवाल यह है कि क्या क्या सुप्रीम कोर्ट जजों के अति-बोलने पर लगाम लगा पाएगा? इसे समझने के लिए लगभग एक सदी पीछे चलते हैं, जहां एक अंग्रेज जज हिप्पी हैलेट को अति-बोलने के कारण खामियाजा भुगतना पड़ा था. 

हिप्पी हैलेट, जिन्हें ​​सर ह्यूग इम्बर्ट पेरियम हैलेट के नाम से भी जाना जाता था, एक अंग्रेज वकील थे. उन्होंने अपने कानून के ज्ञान से सभी को प्रभावित किया था. उन्हें 1939 में जज के रूप में नियुक्त किया गया था. जज बनने के बाद वह लगातार बहस करने वाले वकीलों को बीच में रोककर सवाल पूछते थे, जिससे अक्सर वकीलों को मामले को सुसंगत रूप से प्रस्तुत करने में परेशानी होती थी. एक मामले में जोन्स बनाम नेशनल कोल बोर्ड [1957 (2) क्वीन्स बेंच 55] - वे अपने सवालों में इतने दबंग थे कि दोनों पक्षों ने समान आधार पर फैसले के खिलाफ अपील की. न्यायाधीश के व्यवधानों ने वकील के लिए तर्कों को ठीक से रखना असंभव बना दिया.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हैलेट जैसे जज को मामले में सच्चाई तक पहुंचने के लिए जांच करने के लिए बहुत ऊंचा दर्जा दिया होगा और जज के ऐसी स्थिति में डाले गए वकीलों की दुर्दशा पर हंसा होगा. इंग्लैंड में ऐसा नहीं है. न्यायमूर्ति हैलेट के फैसले को खारिज कर दिया गया. नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया गया. अपील के फैसले में लॉर्ड चांसलर बेकन का हवाला दिया गया, 'धैर्य और सुनवाई की गंभीरता न्याय का एक अनिवार्य हिस्सा है और अधिक बोलने वाला जज कोई अच्छी तरह से ट्यून की गई झांझ नहीं है.'

अंग्रेजी न्यायपालिका इस मुद्दे के प्रति इतनी संवेदनशील थी कि तत्कालीन लॉर्ड चांसलर ने जस्टिस हैलेट को बुलाया और व्यवस्था की कि वह कुछ समय तक बैठे रहें और फिर इस्तीफा दे दें. लॉर्ड अल्फ्रेड थॉम्पसन डेनिंग ने जस्टिस हैलेट के फैसले को खारिज किया था. उन्होंने जज के करियर के अचानक खत्म होने पर दुख जताया. लॉर्ड अल्फ्रेड थॉम्पसन डेनिंग ने कहा, 'यह एक मार्मिक मामला था क्योंकि वह सक्षम और बुद्धिमान थे, लेकिन उन्होंने बहुत सारे सवाल पूछे. इंग्लैंड में जो एक अलग मामला था. वह भारत में एक सामान्य प्रथा बन गई है. कुछ जजों का यह अति-बोलने का स्वभाव न्यायपालिका की सावधानीपूर्वक तैयार की गई गरिमा को कम कर रहा है.

सुप्रीम कोर्ट और न्यायपालिका की बड़ी चुनौती

सुप्रीम कोर्ट कोर्ट रूम में सलाहकार आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए हाई कोर्ट के जज को अधिक से अधिक सावधान या फटकार सकता है. क्या दिशा-निर्देश सेमिनार या सम्मेलनों में हाई कोर्ट के जज के भाषण पर लागू होंगे? शायद नहीं. हाल ही में एक सुप्रीम कोर्ट के जज ने एक योग गुरु के आचरण से परेशान होकर टिप्पणी की थी, 'हम तुम्हें चीर देंगे.' क्या बनाए जाने वाले दिशा-निर्देश सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पर लागू होंगे?

संविधान में क्या है प्रावधान

यदि कोई न्यायाधीश बार-बार न्यायालय के अवलोकन के लिए दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हैं और तर्कहीन बातें करता रहते हैं तो क्या इसे दुर्व्यवहार या अक्षमता माना जा सकता है, जिसके कारण उन्हें हटाया का फैसला लिया जाना चाहिए? संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज को हटाने की सिफारिश करना होगा. अधिक और अनुचित बोलने की ऐसी रिपोर्ट मिलने पर चीफ जस्टिस को अनुच्छेद 124(4) के तहत संसद में हटाने के प्रस्ताव को शुरू करने के लिए सरकार को इसे अग्रेषित करने का निर्णय लेना होगा, जिस प्रस्ताव को प्रत्येक सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए. 

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