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दिल्ली के बीचोबीच बसे नारायणा गांव का क्या है इतिहास, जहां PM Modi ने मनाया लोहड़ी?

PM Modi Visit Narayana Village on Lohri: 900 साल पुराने नारायणा गांव की ज़्यादातर गलियां इतनी संकरी हैं कि गाड़ियां वहां नहीं जा सकतीं. जब तक नगर निगम उन्हें साफ़ नहीं करता, तब तक कूड़े के ढेर पड़े रहते हैं. यह गांव के मुख्य प्रवेश द्वार ही है.

PM Modi Visit Narayana Village on Lohri: लोहड़ी के खास त्योहार पर पीएम मोदी दिल्ली के लोहड़ी गांव पहुंचे, जहां उन्होंने दीप भी प्रज्वलित की. इस दौरान पीएम मोदी ने वहां रह रहे लोगों से बात भी की. वहां हुए नृत्य में भी वे शामिल हुए. लेकिन आज हम आपको  दिल्ली के इस नारायणा गांव का इतिहास बताने जा रहे हैं. 

सेंट्रल रिज की वनीय गोद में बसा नारायणा गांव अक्सर रिंग रोड के पास बसा है. यह गांव प्रधानमंत्री कार्यालय के सबसे करीब है, जो कि मध्य दिल्ली के बीचों-बीच है. इसके आसपास की चकाचौंध के बाद भी ये अभी भी पिछड़ा हुआ है. गांव की ज़्यादातर गलियां इतनी संकरी हैं कि गाड़ियां वहां नहीं जा सकतीं. जब तक नगर निगम उन्हें साफ़ नहीं करता, तब तक कूड़े के ढेर पड़े रहते हैं. यह गांव के मुख्य प्रवेश द्वार ही है. 

900 साल पुराना है नारायणा गांव

माना जाता है कि यह गांव 1300 के आसपास बसा था, लेकिन एक सदी पहले यह इतना बुरा सपना नहीं था.  2,900 एकड़ में फैला यह जंगल अब रिज का रूप ले चुका है, नारायणा खुशहाल किसानों का एक समृद्ध गांव था, जिनकी आय मुख्य रूप से गाजर की फसलों से होती थी. 

नारायणा की किस्मत ने तब एक बड़ा मोड़ लिया, जब अंग्रेजों ने 1911 में भारत की राजधानी को कोलकत्ता से नई दिल्ली में ट्रांसफर करने का फैसला किया. अंग्रेजों ने दिल्ली छावनी की स्थापना के लिए गांव की लगभग आधी जमीन का अधिग्रहण कर लिया. एकांत में बसा यह गांव रातों-रात प्रीमियम भूमि के एक टुकड़े में बदल गया. जैसे-जैसे नए स्वतंत्र देश की राजधानी का विस्तार हुआ, अधिकारियों ने गांव की जमीन पर लालच भरी नज़र डाली.

सिकुड़ता गया नारायणा गांव

दशकों बाद भी गांव वालों को उस दौर की पीड़ा हर दिन महसूस होती है. स्वतंत्रता के बाद भी औने-पौने दामों पर भूमि अधिग्रहण जारी रहा क्योंकि नई सरकार ने औद्योगिक और नियोजित आवासीय क्षेत्रों की स्थापना की. पड़ोस फल-फूल रहा था और गांव दिन-ब-दिन सिकुड़ता जा रहा था. 

गांव के कई घरों में अभी भी नल का पानी नहीं आता है. आबादी बढ़ने के साथ ही नई जरूरतें भी बढ़ गई हैं. लोग एक स्वास्थ्य सेवा केंद्र, पार्क, सामुदायिक हॉल, बच्चों के लिए खेल का मैदान और जाम सीवेज लाइनों से मुक्ति चाहते हैं.

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