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UCC से मुस्लिम महिलाओं को मिलेगा उनका हक... कर्नाटक हाई कोर्ट ने समान नागरिक संहिता के लिए मोदी सरकार से कर दी ये अपील

Karnataka High Court On UCC: कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जहां तक ​​उत्तराधिकार के अधिकार का सवाल है तो हिंदू कानून के तहत भाई-बहन के बीच भेदभाव की स्थिति नहीं पाई जाती, लेकिन मुस्लिमों अब भी महिलाओं को उनका हक नहीं मिल पाता है.

Karnataka High Court On UCC: देश में समान नागरिक संहिता(UCC) की मांग उठती रहती है. इस बीच एक मामले की सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी सामने आई है. हाई कोर्ट  ने सुझाव दिया है कि राज्य और केंद्र सरकारें समान नागरिक संहिता को लागू करने की दिशा में काम करें ताकि जाति और धर्म से परे भारत में सभी महिलाओं के बीच समानता का अधिकार मिलेगा. कोर्ट की ये टिप्पणी खासकर मुस्लिम महिलाओं के लिए थी. 

जस्टिस हंचेट संजीवकुमार ने मौजूदा कानून के तहत महिला को उसके भाइयों की तुलना में कम हिस्सा मिलने पर समानता के अधिकार को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने आगे कहा मामले में वादी मृतक शहनाज़ बेगम के दो भाई और बहन हैं. हालांकि, वादी नंबर 3 बहन होने के नाते संपत्ति में हिस्सा पाने की हकदार है लेकिन उसे हिस्सेदार के रूप में नहीं रखा गया है. यह भाइयों और बहनों के बीच भेदभाव की परिस्थितियों में से एक है, लेकिन यह हिंदू कानून के तहत नहीं पाया जाता है

UCC क्यों है देश और संविधान के लिए जरूरी?

कोर्ट ने पाया कि संपत्ति पति और पत्नी द्वारा संयुक्त रूप से अर्जित की गई थी, जो शिक्षक थे और उनकी आय और पेंशन से अर्जित की गई थी. मुस्लिम उत्तराधिकार कानून के सिद्धांतों को लागू करते हुए कोर्ट ने कहा कि इसलिए भाई-बहनों के हिस्से की गणना केवल मृतक महिला के हिस्से के आधार पर की जाएगी. इस प्रकार मृतक के पति को 75 प्रतिशत, मृतक के भाइयों को 10-10 और बहन को 5 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा.  

कोर्ट ने आगे कहा, 'भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने से भारत के संविधान की प्रस्तावना में समानता का उद्देश्य और आकांक्षाएं पूरी होंगी. इससे एक सच्चा धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य, राष्ट्र की एकता, अखंडता, न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की सुरक्षा होगी। न्यायालय का मानना ​​है कि समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने और इसके लागू होने से निश्चित रूप से महिलाओं को न्याय मिलेगा, सभी के लिए स्थिति और अवसर की समानता प्राप्त होगी और जाति और धर्म के बावजूद भारत में सभी महिलाओं के बीच समानता के सपने को गति मिलेगी।"

क्या है पूरा मामला? 

कोर्ट ने कहा कि हिंदू कानून के तहत भाइयों और बहनों को समान रूप से दर्जा/अधिकार/हकदारी और हित प्राप्त हैं. इसलिए यहां 'समान नागरिक संहिता' पर कानून बनाने की आवश्यकता है. ये टिप्पणियां एक मृतक मुस्लिम महिला की संपत्ति के उत्तराधिकार पर एक फैसले में की गईं.

बता दें कि महिला के भाई-बहनों ने 2020 में निचली अदालत की ओर से उसकी संपत्ति में दिए गए हिस्से के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उसके पति ने तर्क दिया कि उसके भाई-बहन संपत्ति के हकदार नहीं हैं क्योंकि उसने उसे प्यार से खरीदा था और यह उसके माता-पिता की तरफ से नहीं दिया गया था. हालांकि, उसके भाई-बहनों ने तर्क दिया कि संपत्ति खुद से की गई अर्जित थी. 

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