Reservation: क्या होता है आंतरिक आरक्षण? जिसे सुप्रीम कोर्ट ने दे दी मंजूरी, 'SC-ST को कोटा देने से नहीं रोक सकता है कोई'
Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने आज SC-ST को कोटा के अंदर कोटा देने के फैसले को मंजूरी दे दी है. कोर्ट ने कहा कि कि ये पिछड़े लोगों का संवैधानिक अधिकार है. वहीं 7 जजो जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि ज्यादा पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है.

Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम फैसले सुनाया है, जिसमें आंतरिक आरक्षण यानी कि कोटा के अंदर कोटा (Quota in quota) को मंजूरी दे दी है. ये फैसला 7 न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया है. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि अब राज्य सरकार पिछड़े लोगों (SC-ST) में भी सब कैटेगरी बना सकती है, जिससे अधिक जरूरतमंदों को फायदा मिलेगा और उनका उत्थान होगा. हालांकि, 7 न्यायाधीशों की पीठ चार ने SC-ST के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने की भी मांग की, ताकि आरक्षण का लाभ ऐसे समुदायों में केवल पिछड़े लोगों तक ही पहुंच सके.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आरक्षण की सुविधा के लिए राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के भीतर सब कैटेगरी यानी की काटो के अंदर कोटा बना सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ईवी चिन्नैया मामले में 2004 के पांच जजों के इस फ़ैसले को पलटा है, जिसमें कहा गया था कि SC-ST के भीतर उप-श्रेणियां नहीं बनाई जा सकतीं.
चीफ जस्टिस ने 7 जजों में बहुमत पर सुनाया फैसला
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 6 जजों की बहुमत से फैसला सुनाया. जबकि जस्टिस बेला त्रिवेदी ने बहुमत की राय से असहमति जताई है. चीफ जस्टिस ने कहा, "हमने ईवी चिन्नैया मामले में फैसले को खारिज कर दिया है. उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि उप-समूहों को सूची से बाहर नहीं रखा गया है."
सब-कैटेगरी को 100% आरक्षण की नहीं मिली मंजूरी
जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अनुसूचित जाति/जनजाति के भीतर कुछ श्रेणियों को सदियों से भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है. जस्टिस गवई ने फैसले में स्पष्ट किया कि उप-वर्गीकरण की अनुमति तो है, लेकिन राज्य किसी एक सब कैटेगरी को 100% आरक्षण को मंजूरी नहीं दे सकता है.
क्या होता है आंतरिक आरक्षण?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के भीतर सब कैटेगरी यानी की कोटा के भीतर कोटा बनाने की अनुमति मिल गई है. इसका मतलब है कि इन कैटेगरी के भीतर विभिन्न उप-समूहों की पहचान की जा सकती है और उन्हें अलग-अलग स्तरों का आरक्षण दिया जा सकता है.
उदाहरण के लिए, यदि किसी राज्य में एससी कैटेगरी के अंतर्गत 150 जातियां हैं, तो राज्य सरकार अलग-अलग सब कैटेगरी बना सकती है और उसके अनुसार आरक्षण आवंटित कर सकती है. यह देखना भी दिलचस्प होगा कि क्या इससे ओबीसी की तरह एससी/एसटी के भीतर भी क्रीमी लेयर का निर्माण होता है.
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