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हथकड़ी और पैरों में जंजीर...भारतीय अप्रवासी ने अमेरिका से निर्वासन की सुनाई आपबीती

बुधवार को अमेरिका से अमृतसर सैन्य विमान से पहुंचे 104 अवैध भारतीय प्रवासियों ने बताया कि उनकी पूरी यात्रा में उन्हें जंजीर और हथकड़ियां से बांधकर रखा गया और जैसे ही एयरपोर्ट पर उनका विमान लैंड हुआ उनके हाथ पैर खोल दिए गए.

America Deported Illegal Indian Immigrants: बुधवार को अमेरिका से अमृतसर सैन्य विमान से पहुंचे 104 अवैध भारतीय प्रवासियों ने बताया कि उनकी पूरी यात्रा में उन्हें जंजीर और हथकड़ियां से बांधकर रखा गया और जैसे ही एयरपोर्ट पर उनका विमान लैंड हुआ उनके हाथ पैर खोल दिए गए.

दरअसल अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब दोबारा अपने गद्दी पर विराजे तो उन्होंने अमेरिका से भारतीय प्रवासियों को निकालने का आदेश दे दिया. इसके बाद भारतीय प्रवासियों को पहली बार विमान के द्वारा हथकड़ियां और बेडियो में हाथ पैर बांधकर भारत वापस लाया गया. आखिर भारतीय प्रवासियों के साथ ऐसा क्यों किया गया यह खुद भारतीय प्रवासी आपको बताएंगे.

पंजाब के गुरदासपुर जिले के रहने वाले 36 वर्षीय सतपाल सिंह ने बताया कि 24 जनवरी को अचानक अमेरिका की सीमा गश्ती पर उन्हें पकड़ लिया गया और बेरहमी से उनके हाथ-पैर जंजीरों में जकड़ दिए गए. इसके बाद यह जंजीर अमेरिका के धरती से भारत की धरती पर उतरने के बाद ही खोले गए.

अप्रवासियों का पहला जत्था 

जानकारी के लिए बता दें कि विभिन्न राज्यों से 104 अवध प्रवासियों को लेकर अमेरिका सैन्य विमान बुधवार को अमृतसर पहुंचा था. यह अवैध आप्रवासन ट्रंप प्रशासन द्वारा पहली बार किया गया है और भारत में ले गए अवैध प्रवासियों का यह पहला जत्था है. वहीं निर्वासित किए गए 104 लोगों में 33 हरियाणा से, 33 गुजरात से, 30 पंजाब से, तीन-तीन महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश से और दो चंडीगढ़ से थे. इसके अलावा अप्रवासियों के समूह में 19 महिलाएं और 13 नाबालिग भी शामिल थे, जिनमें एक चार साल का लड़का और दो लड़कियां शामिल थीं जिनकी उम्र पांच और सात वर्ष थी.

निर्वासित प्रवासियों की आपबीती 

अमेरिका से पंजाब पहुंच गए निर्वासित लोगों को अमृतसर हवाई अड्डे से उनके घर तक पुलिस की गाड़ी में ले जाया गया. लोगों के घर पहुंचने के बाद जब उनसे उनकी यात्रा के बारे में पूछा गया तो उनकी आपबीती सुनकर आपकी आंखों से आंसू छलक पड़ेंगे कि आखिर निर्वासित किए गए लोगों के साथ घुसपैठियों जैसे व्यवहार क्यों किया गया.

पंजाब के रहने वाले जसपाल से जब बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि ब्राजील में 6 महीने रहने के बाद जब जसपाल अमेरिका की सीमा पार कर चुके थे तो उन्हें सीमा की गश्ती पर ही धर लिया गया और जंजीरों से बांधकर गाड़ियों में ले जाया गया और आज वह पंजाब में है.

वहीं बुधवार की रात होशियारपुर में अपने घर पहुंचे दो अन्य निर्वासित लोगों से बात की गई तो उन्होंने अपने अमेरिका से भारत की यात्रा की दुखद कहानी बताई कि उन्हें इस बीच कितनी पीड़ा और यातनाएं झेलनी पड़ी थी. अपनी यातना और यात्रा के बारे में बताते हुए वो पनामा के जंगल में हुई मौत को याद कर रहे थे. 

होशियारपुर के रहने वाले हरविंदर सिंह ने बताया कि पिछले साल अगस्त में वह अमेरिका गए थे उस बीच उन्हें डंकी करते हुए कतर, ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पनामा, निकारागुआ और फिर मैक्सिको के माध्यम से ले जाया गया। जिसके बाद मेक्सिको से उन्हें और उनके अन्य साथियों को अमेरिका पहुंचाया गया था.

हरविंदर सिंह ने बताया कि वह कैसे पहाड़ियों को पार कर एक नाव के सहारे उन्हें और उनके अन्य साथियों को ले जाया जा रहा था.समुद्र में कितनी बार उन्होंने मौत का सामना किया लेकिन वह बच गए. उन्होंने बताया कि इस यात्रा के दौरान उन्होंने कई लोगों की मौत देखी.‌ 

जिसमें पहले पनामा के जंगल में एक व्यक्ति की मौत हुई और दूसरे को समुद्र में डूबते हुए देखा था. अपने आंखों के सामने लोगों की मौत होते देख उनकी रूह कांप चुकी थी. इसके बाद फिर उनके ट्रैवलर एजेंट ने मेक्सिको पहुंचने से पहले उन्हें यूरोप के रास्ते अपने मंजिल तक पहुंचाने का दिलासा दिया और बीच उनसे यात्रा के नाम पर 42 लख रुपए लूट लिए गए.

'डंकी' की खतरनाक कहानी

पंजाब पहुंचे एक अन्य निर्वासित व्यक्ति ने भी अपनी आप बीती बताई उसने बताया कि कैसे उसकी डंकी यात्रा कितनी दुर्गम रही. उसने कहा कि रास्ते में कैसे उससे 35 हजार रुपए और उसके कपड़े चोरी कर लिए गए थे. उसने बातचीत के दौरान बताया कि उसके एजेंट ने उसे लैटिन अमेरिका पहुंचने से पहले उसे इटली ले गया जिसके 15 घंटे की बोट सवारी के बाद उसे और उसके साथियों को 45 किलोमीटर तक पैदल चलाया गया. 

जिसमें 18 पहाड़ियों को पार किया और अगर गलती से उनका पैर फिसल जाता तो उनकी कहानी वही खत्म हो जाती. इस यात्रा के दौरान कितने लोगों ने अपनी जान गवा दी तो कितने लोग घायल हो चुके थे. जो चलने की हालत में नहीं थे उन्हें वहीं छोड़ दिया गया. जो मर गए थे उन्हें हम दोबारा देख ना सके. उनकी यह 'डंकी यात्रा' इतनी दुर्गम होगी कि उनके अंतिम सांस भी कष्ट दाई होगी उन्होंने कभी जीवन में सोचा नहीं था.

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