New criminal laws: देश के कानून से अंग्रेज का छाप खत्म, 1 जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून लागू, जानिए कहां और क्या बदला?
New criminal laws: देशभर में आज से तीन नए अपराधिक कानून लागू कर दिए गए हैं. इसके तहत लोग देश के किसी भी थाने में अपना एफआईआर दर्ज कर सकता है.

New criminal laws: 1 जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून देशभर में लागू कर दिए जाएंगे. इससे भारत में कानून के तहत लोगों को न्याय और सुधार का तरीका बदल जाएगा. देश में अब इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) और इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) की जगह तीन नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) लागू हो रहे हैं.
देशभर में आज यानी 1 जुलाई से घटित सभी घटनाओं में इस नए कानून के तहत न्याय की जएगी. इसमें कुछ धाराएं हटा दी गई हैं तो कुछ नई धाराएं जोड़ी गई हैं. इसके साथ ही अब पुलिस, वकील और अदालतों के साथ-साथ आम लोगों के कामकाज में भी काफी बदलाव आने वाला है.
क्राइम के तहत कई प्रचलित धाराएं बदल गई है, इसलिए कोर्ट, पुलिस, वकील और प्रशासन को भी नई धाराओं का अध्ययन करना होगा. वहीं सन 2027 से पहले देश के सारे कोर्ट कम्प्यूरीकृत कर दिए जाएंगे.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नये कानून न्याय मुहैया कराने को प्राथमिकता देंगे जबकि अंग्रेजों (देश पर ब्रिटिश शासन) के समय के कानूनों में दंडनीय कार्रवाई को प्राथमिकता दी गयी थी.
बदले गए जस्टिस कोड के नाम-
- इंडियन पीनल कोड (IPC) - अब हुई भारतीय न्याय संहिता (BNS)
- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) - अब हुआ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
- इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) - अब हुआ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
कहीं भी करा सकेंगे FIR
'जीरो एफआईआर' से अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में FIR दर्ज करा सकता है, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं हुआ हो. हालांकि, इसे 15 दिन के अंदर मूल जूरिडिक्शन, यानी जहां अपराध हुआ है. गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति को अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार दिया गया है.
इसके अलावा, गिरफ्तारी की पूरी जानकारी पुलिस थानों और जिला मुख्यालयों में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा जिससे कि गिरफ्तार व्यक्ति के परिवार और मित्र महत्वपूर्ण सूचना आसानी से पा सकेंगे. यही नहीं FIR दर्ज होने के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना होगा. इसके साथ ही चार्जशीट दाखिल होने के बाद 60 दिन के अंदर अदालत को आरोप तय करने होंगे.
नए कानून के तहत क्या बदला और क्या होगा फायदा?
- नए कानून में किसी भी अपराध के लिए अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉन्ड पर रिहा करने की व्यवस्था है.
- सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए संबंधित अथॉरिटी 120 दिनों के अंदर अनुमति देगी. यदि इजाजत नहीं दी गई तो उसे भी सेक्शन माना जाएगा.
- केस की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर अदालत को फैसला देना होगा. इसके बाद 7 दिनों में फैसले की कॉपी उपलब्ध करानी होगी.
- हिरासत में लिए गए व्यक्ति के बारे में पुलिस को उसके परिवार को ऑनलाइन, ऑफलाइन सूचना देने के साथ-साथ लिखित जानकारी भी देनी होगी.
- महिलाओं के मामलों में पुलिस को थाने में यदि कोई महिला सिपाही है तो उसकी मौजूदगी में पीड़ित महिला का बयान दर्ज करना होगा.
- नाबालिग से रेप या गैंगरेप के मामले में अधिकतम सजा में फांसी का प्रावधान है. वहीं, शादी का वादा करके यौन संबंध बनाने के अपराध को रेप से अलग रखा गया है. यह अलग अपराध के रूप में परिभाषित किया गया है.
- मॉब लिंचिंग को भी अपराध के दायरे में लाया गया है. इन मामलों में 7 साल की कैद, आजीवन कारावास या फांसी का प्रावधान किया गया है.
- वैवाहिक बलात्कार के मामलों में यदि पत्नी 18 साल से अधिक उम्र की है तो उससे जबरन संबंध बनाना रेप (मैराइटल रेप ) नहीं माना जाएगा.
- यदि कोई शादी का वादा करके संबंध बनाता है और फिर वादा पूरा नहीं करता है तो इसमें अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में कुल 531 धाराएं हैं. इसके 177 प्रावधानों में संशोधन किया गया है. इसके अलावा 14 धाराएं खत्म हटा दी गई हैं. इसमें 9 नई धाराएं और कुल 39 उप धाराएं जोड़ी गई हैं. अब इसके तहत ट्रायल के दौरान गवाहों के बयान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दर्ज हो सकेंगे.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)
भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं. अब तक इंडियन एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थीं. नए कानून में 6 धाराएं निरस्त कर दी गई हैं. इस अधिनियम में दो नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं. इसमें गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है. दस्तावेजों की तरह इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कोर्ट में मान्य होंगे. इसमें ई-मेल, मोबाइल फोन, इंटरनेट आदि से मिलने वाले साक्ष्य शामिल होंगे.
भारतीय न्याय संहिता (BNS)
आईपीसी में जहां 511 धाराएं थीं, वहीं बीएनएस में 357 धाराएं हैं.
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