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क्या भारत की जासूसी के लिए चीन कर रहा है पक्षियों का इस्तेमाल? कर्नाटक नौसैनिक अड्डे के पास मिली एक सीगल ने बढ़ा रही टेंशन

कर्नाटक के कारवार तट पर INS कदंबा नौसैनिक बेस के पास GPS लगे एक प्रवासी सीगल के मिलने से सुरक्षा एजेंसियों में हड़कंप मच गया. शुरुआती जांच में पता चला कि डिवाइस चीन के एक रिसर्च संस्थान से जुड़ा है और इसे वैज्ञानिक अध्ययन के लिए इस्तेमाल किया गया हो सकता है. संवेदनशील इलाके को देखते हुए वन विभाग, पुलिस और नौसेना संयुक्त रूप से मामले की जांच कर रहे हैं.

GPS seagull Karnataka: कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में कारवार तट के पास बुधवार (17 दिसंबर) को एक प्रवासी सीगल (समुद्री पक्षी) मिला, जिसके शरीर पर चीन में बना GPS ट्रैकिंग डिवाइस लगा हुआ था. यह घटना भारतीय नौसेना के अत्यंत रणनीतिक बेस INS कदंबा के नजदीक सामने आई, जिसके बाद सुरक्षा एजेंसियों के बीच जासूसी को लेकर चिंता बढ़ गई. मामले की गंभीरता को देखते हुए वन विभाग, स्थानीय पुलिस और नौसेना की संयुक्त जांच शुरू कर दी गई है.

कैसे सामने आया मामला

जानकारी के मुताबिक, इस सप्ताह की शुरुआत में स्थानीय लोगों ने कारवार के तटीय इलाके में थिम्मक्का गार्डन के पीछे एक घायल सीगल को देखा. पक्षी की पीठ पर बंधे अजीब से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस ने लोगों को चौंका दिया. शक होने पर उन्होंने तुरंत वन विभाग की मरीन विंग को इसकी सूचना दी.

इसके बाद कारवार के रवींद्रनाथ टैगोर बीच स्थित कोस्टल मरीन पुलिस सेल मौके पर पहुंची और सीगल को सुरक्षित पकड़कर वन विभाग को सौंप दिया. वन अधिकारियों ने पक्षी और उसके शरीर पर लगे डिवाइस की जांच शुरू की.

GPS डिवाइस में क्या मिला

जांच के दौरान सामने आया कि सीगल के शरीर पर बंधे ट्रैकर में एक इलेक्ट्रॉनिक यूनिट और छोटा सा सोलर पैनल लगा हुआ था. इसके साथ एक नोट भी जुड़ा था, जिसमें एक ईमेल आईडी लिखी थी. नोट में कहा गया था कि अगर कोई इस पक्षी को पाए, तो उस ईमेल पते पर संपर्क करे.

जासूसी या वैज्ञानिक रिसर्च?

प्रारंभिक जांच में अधिकारियों ने पाया कि डिवाइस पर दर्ज ईमेल आईडी चीन की 'चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज' (CAS) के अंतर्गत आने वाले रिसर्च सेंटर फॉर इको-एनवायरनमेंटल साइंसेज से जुड़ी है. यह संस्थान बीजिंग में स्थित है.

इसके बाद एजेंसियों ने इस बात की जांच शुरू की कि क्या यह मामला जासूसी से जुड़ा है या फिर किसी वैज्ञानिक रिसर्च का हिस्सा. अधिकारियों के अनुसार, शुरुआती निष्कर्ष बताते हैं कि इस GPS ट्रैकर का इस्तेमाल सीगल की उड़ान, प्रवास मार्ग और भोजन की आदतों का अध्ययन करने के लिए किया जा रहा था.

पुलिस का कहना है कि फिलहाल जासूसी से जुड़े कोई ठोस सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन जांच पूरी होने तक सभी पहलुओं पर नजर रखी जा रही है.

10 हजार किलोमीटर से ज्यादा का सफर

GPS डिवाइस से निकाले गए डेटा के अनुसार, यह सीगल आर्कटिक क्षेत्रों समेत 10,000 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय करके कर्नाटक के तट तक पहुंचा था. अधिकारियों का कहना है कि यह जानकारी प्रवासी पक्षियों पर हो रहे अंतरराष्ट्रीय शोध की ओर इशारा करती है.

उत्तर कन्नड़ के पुलिस अधीक्षक दीपन एमएन ने बताया कि यह भी जांच की जा रही है कि कहीं इस डिवाइस में कोई अतिरिक्त डेटा ट्रांसमिशन क्षमता तो नहीं है. इसके लिए ट्रैकर को तकनीकी जांच के लिए भेजा जाएगा.

INS कदंबा के पास मिलने से बढ़ी चिंता

इस पूरे मामले को संवेदनशील इसलिए माना जा रहा है क्योंकि सीगल जिस इलाके में मिला, वह INS कदंबा के बेहद करीब है. यह भारतीय नौसेना के सबसे महत्वपूर्ण ठिकानों में से एक है, जहां युद्धपोत, पनडुब्बियां और एयरक्राफ्ट कैरियर तैनात रहते हैं. विस्तार के बाद INS कदंबा को पूर्वी गोलार्ध का सबसे बड़ा नौसैनिक अड्डा माना जाएगा.

अधिकारियों का कहना है कि भले ही GPS ट्रैकिंग वन्यजीव अनुसंधान का सामान्य हिस्सा हो, लेकिन इतनी संवेदनशील जगह पर ऐसा मामला सामने आना चिंता का विषय है.

भारत में पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले

यह पहली बार नहीं है जब भारत में 'संदिग्ध पक्षी' का मामला सामने आया हो. 2024 में कारवार के बाइठकोल पोर्ट क्षेत्र में GPS डिवाइस लगे एक वॉर ईगल को पकड़ा गया था, जो बाद में रिसर्च प्रोजेक्ट का हिस्सा निकला.

इसके अलावा, मुंबई में 2023 में एक कथित चीनी जासूस कबूतर पकड़ा गया था, जिसे आठ महीने तक हिरासत में रखा गया. बाद में जांच में पता चला कि वह ताइवान का रेसिंग बर्ड था, जो भटककर भारत आ गया था. इसी तरह कश्मीर और अन्य इलाकों में भी कबूतरों को लेकर जासूसी की आशंका वाले मामले सामने आते रहे हैं.

आगे क्या होगा

फिलहाल सुरक्षा एजेंसियां चीनी रिसर्च संस्थान से जवाब का इंतजार कर रही हैं. GPS डिवाइस की तकनीकी जांच रिपोर्ट आने के बाद ही यह तय किया जाएगा कि आगे क्या कार्रवाई की जाए. अधिकारियों का कहना है कि जब तक सभी पहलुओं की पूरी तरह से पुष्टि नहीं हो जाती, तब तक सतर्कता बरती जाएगी.

इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि वैज्ञानिक रिसर्च और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए, खासकर तब जब मामला रणनीतिक सैन्य ठिकानों से जुड़ा हो.

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