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एशिया में वर्चस्व का खेल! भारत-पाकिस्तान मुद्दों पर कैसा रहा है अमेरिका की भूमिका का इतिहास?

America In India Pakistan conflict: भारत-पाकिस्तान मुद्दों पर भारत तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का विरोध करता रहा है, खासकर अमेरिका की उस भूमिका से जो कभी-कभी पाकिस्तान के पक्ष में रही. भारत हमेशा से ही अपनी समस्याओं को द्विपक्षीय बातचीत से हल करने पर जोर देता रहा है.

America In India Pakistan conflict: भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से तनाव रहा है. दोनों देशों के बीच कई बार जंग हुई है, कई बार बातें बनी और टूटीं. इस बीच अमेरिका की भूमिका भी बड़ी दिलचस्प रही है. वो हमेशा चौधरी बनने के फिराक में लगा रहता है. अबकी बार अमेरिका अपनी गिरती हुई ताकत के बीच फिर से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव में टांग अड़ाने की कोशिश कर रहा है. 

अमेरिका ट्रेड की धमकी देकर भारत को दबाने की कोशिश में लगा है. कभी टैरिफ को बढ़ा देना तो कभी भारत पर अतिरिक्त कर का दवाब डालना अमेरिका के चौधरी बनने की ये कहानी है और ये सब अमेरिका एशिया में वर्चस्व कायम रखने के लिए करता है, क्योंकि भारत और चीन जैसे देश उसे रत्ती भर भी भाव नहीं देते. आइए जानते हैं कि अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान मुद्दों पर क्या किया और भारत ने इसकी क्या प्रतिक्रिया दी...

ट्रम्प का दावा और असलियत

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बड़ा दावा किया कि उन्होंने व्यापार की बात करके भारत और पाकिस्तान को लड़ना बंद करा दिया. ट्रम्प ने कहा कि हमने कहा कि अगर आप एक-दूसरे पर गोली चलाएंगे तो हम व्यापार नहीं करेंगे, इसलिए उन्होंने समझदारी दिखाई और झगड़ा खत्म हो गया.

लेकिन भारत सरकार ने साफ किया कि हाल की फायरिंग बंदी के पीछे दोनों देशों के बीच सीधे बातचीत थी, न कि अमेरिका के व्यापार दबाव का कोई रोल था. भारत हमेशा चाहता है कि उसके मुद्दे पाकिस्तान के साथ सीधे बातचीत से सुलझें, बिना किसी तीसरे देश की दखलअंदाजी के.

भारत-पाकिस्तान को जोड़ने वाली वो 'हाइफ़न' (–)

भारत को बहुत नागवार गुज़रता है जब भारत और पाकिस्तान को एक साथ जोड़ा जाता है, जैसे India-Pakistan कह कर. इसे 'हाइफ़न' कहते हैं, जो दोनों देशों को एक साथ जोड़ता है. भारत चाहता है कि दुनिया उसे उसके अपने नाम और उसके अपने तौर-तरीकों से देखे, न कि पाकिस्तान के साथ बराबर की लड़ाई के हिस्से के रूप में.

यह कहानी शुरू हुई थी जब 1948 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर का मामला रखा. लेकिन वहां की बैठक में भारत-पाकिस्तान को एक साथ 'India-Pakistan question' के नाम से पेश किया गया, जिससे भारत को बड़ा झटका लगा.

अमेरिका का रोल चार युद्धों में

अब बात करते हैं कि अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान के चार युद्धों में क्या किया:

1947 का पहला युद्ध: अमेरिका चाहता था कि भारत और पाकिस्तान अपने मसले खुद सुलझाएं. संयुक्त राष्ट्र की मदद भी अमेरिका ने दी, लेकिन तीसरी पार्टी को ज्यादा दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए, ये अमेरिका की सोच थी.

1962 भारत-चीन युद्ध: इस युद्ध में अमेरिका ने भारत को सैन्य मदद दी. लेकिन इस मदद का एक हिस्सा था कि भारत पाकिस्तान से बातचीत करे. उस समय अमेरिका ने भारत से कहा कि कश्मीर पर कुछ ना कहो और पाकिस्तान के साथ समझौता करो, जो भारत के लिए मुश्किल था.

1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध: यह वो वक्त था जब अमेरिका ने खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन किया. उस समय पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ कड़ा कदम उठाया था और अमेरिका ने पाकिस्तान को राजनयिक और सैन्य मदद दी क्योंकि पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ अच्छे रिश्ते बनाए थे. इस वजह से अमेरिका भारत में कुछ नापसंद भी हुआ.

1999 का कारगिल युद्ध: इस बार अमेरिका ने साफ तौर पर भारत का समर्थन किया. अमेरिका ने पाकिस्तान को दबाव में लाकर कहा कि वो अपनी सेना को वापस लाइन ऑफ कंट्रोल पर लेकर आए. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इस मुद्दे को बड़ी गंभीरता से लिया और भारत-पाकिस्तान संबंधों में अमेरिका का रुख बदल गया.

तीसरे पक्ष की दखलअंदाजी क्यों पसंद नहीं?

भारत मानता है कि पाकिस्तान के साथ जो भी मुद्दे हैं, उन्हें सीधे बातचीत से ही सुलझाना चाहिए. बड़े देशों की दखलअंदाजी से अक्सर भारत को नुकसान हुआ है. अमेरिका की नीति भी कई बार पाकिस्तान के पक्ष में रही है, जिससे भारत की शंका बढ़ी. इसलिए भारत तीसरे पक्ष को समस्या में नहीं घुसाना चाहता.

नतीजा क्या है?

अमेरिका की भूमिका इतिहास में कभी-कभी भारत के लिए फायदेमंद रही, तो कभी भारत को हताश भी किया. लेकिन भारत की मंशा साफ है — वह अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ सीधा और स्वतंत्र संवाद चाहता है, बिना किसी बाहरी दबाव या दखल के.

अमेरिका भारत-पाकिस्तान के बीच एक अहम तीसरी ताकत रहा है, जिसकी भूमिका जटिल और कई बार विरोधाभासी रही है. ट्रम्प के दावों के बावजूद, भारत हमेशा चाहता है कि उसका मुद्दा पाकिस्तान के साथ सीधे हल हो और उसकी अपनी पहचान दुनिया में बनी रहे.

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