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युद्ध के दौरान Crash Blackouts क्या है? पाकिस्तान के साथ बढ़ते टेंशन के बीच जानना है जरूरी

India Pakistan War: भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच, भारत ने नागरिक सुरक्षा को लेकर युद्ध-स्तरीय तैयारियां शुरू कर दी हैं. गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को मॉक ड्रिल और क्रैश ब्लैकआउट की प्रैक्टिस कराने का निर्देश दिया है. क्रैश ब्लैकआउट में शहरों की सभी लाइटें बंद कर दी जाती हैं ताकि रात के समय दुश्मन के हवाई हमलों से बचा जा सके. यह तकनीक द्वितीय विश्व युद्ध और 1971 के युद्ध में भी इस्तेमाल की गई थी.

India Pakistan War: पहलगाम हमले के बाद से भारत के लिए मानो पाकिस्तान का आतंक सर से ऊपर चला गया हो. भारत भी इस बार आर-पार के मोड में दिख रहा है, जहां गृह मंत्रालय ने युद्ध के दौरान तैयार रहने के लिए नागरिकों को सेल्फ डिफेंस सिखाने के लिए राज्य की सरकारों को मॉक ड्रिल करने का निर्देश जारी किया है. इसमें Crash Blackouts की प्रैक्टिस भी शामिल है. लेकिन ये क्या है... इसे लेकर लोगों के मन में संशय बना हुआ है. 

ब्लैकआउट का प्रयोग सबसे पहले वर्ल्ड वार 2 में शुरू हुआ था. ये  युद्ध शुरू होने से दो दिन पहले 1 सितम्बर 1939 को ब्रिटेन में ब्लैकआउट कर दिया गया था. पहले भी हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सीमा पर स्थित कुछ क्षेत्रों में तनाव बढ़ने के दौरान ब्लैकआउट किया जा चुका है. हालिया घटना के बारे में बात करें तो यूक्रेन ने कुछ शहरों ने रूसी मिसाइल हमलों से बचाने के लिए ब्लैकआउट लागू किया.

युद्ध के दौरान Crash Blackouts क्या है?

क्रैश ब्लैकआउट में शहरों में अचानक बिजली गुल हो जाएगी, रात के समय संभावित हवाई हमलों के दौरान पता लगने से बचने के लिए सभी दिखाई देने वाली लाइटें बंद कर दी जाएंगी. इस रणनीति का आखिरी बार व्यापक रूप से 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया गया था.

युद्ध के दौरान सभी को रात में (सूर्यास्त से पहले) अपने खिड़कियों और दरवाजों को भारी काले पर्दों, कार्डबोर्ड या पेंट से ढकना पड़ता है. इसका उद्देश्य आम नागरिकों को बमबारी के दौरान प्रकाश की किसी भी झलक को बाहर जाने से रोकना होता है. ताकि दुश्मन का विमान देख न पाए और हमले से बचा जा सके. 

क्रैश ब्लैकआउट के दौरान स्ट्रीट लाइट को बंद कर दी जाती है या मंद कर दिया जाता है. प्रकाश को नीचे की ओर मोड़ने के लिए ढाल दिया जाता है. ट्रैफ़िक लाइट और वाहन हेडलाइट को बीम को नीचे की ओर मोड़ने के लिए स्लॉटेड कवर के साथ लगाया जाता है. 

आम भाषा में कहें तो युद्ध के दौरान ब्लैकआउट से शहरों, कस्बों और अन्य आबादी वाले क्षेत्रों में रोशनी को जानबूझकर बंद या मंद कर देने से है, ताकि हवाई बमबारी या निगरानी के दौरान दुश्मन के विमानों को वे कम दिखाई दें.

युद्ध के दौरान ब्लैकआउट का उद्देश्य:

1. दुश्मन के विमानों को ज़मीन पर लक्ष्य पहचानने से रोकना.
2. आबादी वाले क्षेत्रों पर बमबारी को न्यूनतम करके नागरिकों को सुरक्षित रखना.
3. सैन्य ठिकानों, कारखानों और संचार केंद्रों जैसे प्रमुख बुनियादी ढांचे को निशाना बनाए जाने से बचाना.

ब्लैकआउट कैसे होता है लागू?

1. सभी स्ट्रीट लाइटें, घर की लाइटें, तथा दुकानों की साइनबोर्डें बंद कर दी जानी चाहिए या उन पर भारी छाया डाल दी जानी चाहिए.
2. वाहनों की हेडलाइटें या तो बंद कर दी जाती हैं या उन्हें संकरी दरारों से ढक दिया जाता है.
3. रात में घर के अंदर की रोशनी को बाहर जाने से रोकने के लिए पर्दे या ब्लैकआउट ब्लाइंड्स का उपयोग किया जाता है.
4. सायरन प्रणाली का उपयोग अक्सर नागरिकों को ब्लैकआउट शुरू होने या समाप्त होने के बारे में सचेत करने के लिए किया जाता है.

ये भी देखिए: बज गया युद्ध का सायरन! नागरिकों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग, गृह मंत्रालय ने दिए 7 मई को राज्यों को मॉक ड्रिल करने का निर्देश