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लापरवाही या भ्रष्टाचार! बिहार में ₹70,877 करोड़ की सरकारी रकम का कोई लेखा-जोखा नहीं, पढ़िया पूरी CAG रिपोर्ट

CAG की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बिहार सरकार ₹70,877 करोड़ के खर्च का हिसाब नहीं दे पाई है, क्योंकि उपयोगिता प्रमाणपत्र (UCs) जमा नहीं किए गए. इसके अलावा ₹9,205 करोड़ एडवांस की रकम पर भी कोई DC बिल नहीं है, जिससे गबन की आशंका गहराई है.

Bihar CAG Report 2025: बिहार में सरकारी पैसों के गबन और घपले की एक बड़ी कहानी सामने आई है. भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की ताज़ा रिपोर्ट ने राज्य सरकार की वित्तीय जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार सरकार ₹70,877 करोड़ की योजनाओं पर खर्च हुए फंड का उपयोगिता प्रमाण पत्र (UC) देने में नाकाम रही है. इस खुलासे से साफ है कि इस बड़ी रकम का सही-सही इस्तेमाल हुआ भी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती.

सिस्टम की नाकामी या सुनियोजित लापरवाही?

CAG की रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 49,649 योजनाओं के लिए जारी फंड का कोई लेखा-जोखा आज तक नहीं मिला. ये आंकड़ा 31 मार्च 2024 तक का है, यानी सालों से सरकारी विभागों ने UCs जमा ही नहीं किए। इसका सीधा अर्थ ये है कि इन पैसों को कहां और कैसे खर्च किया गया, इसकी कोई जानकारी राज्य सरकार के पास भी नहीं है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इतनी बड़ी संख्या में UCs का लंबित रहना, फंड के गबन, हेराफेरी और दुरुपयोग की संभावना को बेहद बढ़ा देता है.

9,205 करोड़ रुपये की एडवांस रकम भी संदिग्ध

इतना ही नहीं, सरकार की लापरवाही का दूसरा पहलू और भी चौंकाने वाला है. CAG ने खुलासा किया कि ₹9,205.76 करोड़ की एडवांस निकाली गई रकम के लिए अब तक कोई Detailed Contingent (DC) बिल जमा नहीं किया गया है. ये रकम कुल 22,130 Abstract Contingent (AC) बिल्स के तहत दी गई थी. नियम के अनुसार, एडवांस खर्च करने के बाद DC बिल देना अनिवार्य है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि पैसा सही जगह खर्च हुआ है.

कहां है फाइनेंशियल डिसिप्लिन?

CAG ने साफ कहा है कि इस तरह की लापरवाहियां वित्तीय अनुशासन की धज्जियां उड़ाती हैं और जनता के पैसे के दुरुपयोग का रास्ता खोलती हैं. रिपोर्ट में ये भी जोड़ा गया है कि नियमों और कोडल प्रावधानों की अनदेखी से लेखांकन और वित्तीय रिपोर्टिंग की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ता है.

खामोश सरकार, सतर्क जनता

सबसे हैरानी की बात यह है कि इतनी गंभीर अनियमितताओं के बावजूद राज्य सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस सफाई या कार्रवाई की घोषणा नहीं की गई है। जब इतनी बड़ी राशि के सही उपयोग पर ही सवाल खड़े हो जाएं, तो राज्य की वित्तीय पारदर्शिता पर जनता का विश्वास कैसे बना रहेगा?

अब सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही है, या योजनाबद्ध भ्रष्टाचार? क्या CAG की इस रिपोर्ट के बाद भी कोई जिम्मेदार अधिकारी या नेता जवाब देगा? जनता पूछ रही है—पैसा गया कहां?

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