ट्रम्प का अड़ियल रवैया और बड़बोलापन! कैसे भारत और अमेरिका रिश्तों के बीच की खाई को बढ़ा रहा?
India-America Relation: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्षविराम का श्रेय खुद को और अपनी रातभर की कूटनीतिक कोशिशों को दिया, जिसने भारत की क्षमता और स्वाभिमान को ठेस पहुंचाया. ट्रम्प का इस तरह से अड़ियल रवैया और बड़बोलापन कई मोर्चों पर भारत और अमेरिका के रिश्तों के बीच खाई को बढ़ा रहा है.

India-America Relation: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की अड़ियल रवैया और बड़बोलापन वाले दावे भारत-अमेरिका रिश्तों के बीच की दूरियों को बढ़ा रहा है. हाल ही में 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सीज़फायर पर ट्रम्प ने जो दावा किया कि यह अमेरिका की रात भर की कूटनीतिक कोशिशों का नतीजा है, उसे भारत में न केवल अजीब समझा गया बल्कि अपमानजनक भी माना गया.
भारत ने PoK और पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर दुनिया को बता दिया कि वह अब चुप नहीं बैठेगा. ऐसे में जब पाकिस्तान की ओर से जवाबी मिसाइल हमले हुए, तो भारत ने अगले दिन चुनिंदा सैन्य ठिकानों को ध्वस्त कर निर्णायक बढ़त हासिल की. लेकिन ट्रम्प के इस दावे ने मानो भारत की सैन्य उपलब्धियों की अहमियत को कम करके दिखाया.
सीज़फायर का श्रेय लेने की कोशिश
भारत में आम नागरिक से लेकर पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स तक मानते हैं कि यदि भारत ने सीज़फायर किया तो वह उसके निर्धारित सैन्य लक्ष्य पूरे होने के बाद ही किया गया. ऐसे में अमेरिका द्वारा इसे अपनी सफलता बताना न केवल फैक्ट रूप से गलत है, बल्कि यह भारत की संप्रभुता और सैन्य क्षमता का भी अपमान है.
अमेरिका की दोहरी नीति और पाकिस्तान प्रेम
ट्रम्प और अमेरिका की संस्थागत व्यवस्था कई बार पाकिस्तान को लेकर ढुलमुल रवैया अपनाती रही है. चाहे वो 9/11 के बाद पाकिस्तान की आतंकवाद में संलिप्तता हो या अब पहलगाम हमले के बाद भी पाकिस्तान को कठघरे में न खड़ा करना—अमेरिका की नीति भारत के विरोध में दिखा है.
शिमला समझौता और तीसरे पक्ष की दखल से इनकार
भारत बार-बार स्पष्ट कर चुका है कि पाकिस्तान के साथ कोई भी मसला केवल द्विपक्षीय बातचीत के जरिए ही सुलझाया जाएगा. शिमला समझौता इसका कानूनी और कूटनीतिक आधार है. ट्रम्प का मध्यस्थता का दावा इस मूलभूत सिद्धांत के खिलाफ जाता है.
घरेलू मोर्चे पर ट्रम्प की रणनीति
ट्रम्प के इस बयान को कई एक्सपर्ट्स ने घरेलू राजनीतिक दबाव और चीन के साथ चल रहे व्यापार युद्ध से ध्यान भटकाने की चाल माना है. ऐसे समय में भारत-पाक संघर्ष में संघर्ष विराम करवाने का श्रेय लेना ट्रम्प की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत दिखाने की कोशिश हो सकती है.
भारत का संतुलित लेकिन सख्त जवाब
भारत ने अमेरिका को इस विषय पर ज़्यादा तवज्जो नहीं दी, लेकिन चीन और तुर्की जैसे देशों को ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी से बाहर रखा, यह संदेश देने के लिए कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर बेहद सतर्क है. चीन का अरुणाचल प्रदेश को लेकर नया नामकरण भी भारत की भावनाओं को चोट पहुंचाने वाला कदम रहा.
पुरानी दोस्ती पर नए सवाल
ट्रम्प की हालिया हरकतों ने भारत-अमेरिका रिश्तों में थोड़ी दूरी ज़रूर पैदा की है. 1990 के दशक से दोनों देशों के संबंधों में जो गर्मजोशी आई थी, वह कहीं न कहीं इस तरह के बयानों से प्रभावित हो रही है. अब ये जिम्मेदारी अमेरिका की है कि वह सिर्फ रणनीतिक और आर्थिक बातचीत से नहीं, बल्कि जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए रिश्तों में ईमानदारी दिखाए.
क्या ट्रम्प की भाषा और शैली रिश्तों पर भारी पड़ रही?
डोनाल्ड ट्रम्प की भाषा और रवैये ने यह साबित कर दिया है कि सिर्फ राजनीतिक गठबंधन काफी नहीं होते. एक गहरी समझ, सम्मानजनक बयान और पारस्परिक संवेदनशीलता ही ऐसे रिश्तों को मजबूती दे सकती है. अगर अमेरिका चाहता है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और आत्मनिर्भर राष्ट्र के साथ उसका रिश्ता सच्चे मायनों में रणनीतिक साझेदारी कहलाए, तो उसे अपने तेवर और भाषा पर लगाम लगानी ही होगी.
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