विदेशी ताकतों के आगे यूनुस की जी-हुज़ूरी! कैसे बांग्लादेश को बर्बादी की तरफ ले जा रहा नोबेल विजेता नेता?
Bangladesh: बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है, वह सिर्फ एक राजनीतिक संकट नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए खतरे की घंटी है. जब तक विदेशी ताकतें यूनुस जैसे चेहरों का इस्तेमाल करती रहेंगी और कट्टरपंथी तत्व सत्ता के करीब रहेंगे, तब तक बांग्लादेश का भविष्य अंधेरे में रहेगा. सवाल है कि ढाका की सड़कों पर जलती मशालें, टूटते मंदिर, डगमगाती सरकार और चुप बैठा यूनुस — क्या बांग्लादेश को फिर से गुलामी की ओर धकेला जा रहा है?

Bangladesh: 2024 की गर्मियों में बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, वह एक साजिश की तरह था. छात्र आंदोलनों की आड़ में शुरू हुआ विरोध ऐसा तूफान बना जिसने लंबे समय तक देश पर राज करने वाली प्रधानमंत्री शेख हसीना को गद्दी छोड़ने पर मजबूर कर दिया. लेकिन क्या यह वाकई युवाओं का क्रांतिकारी आंदोलन था? या फिर विदेशी ताकतों की साजिश?
इस आंदोलन की खास बात ये रही कि इसके मुखिया बने नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस... एक तरह से समझिए तो शांति का पुरस्कार लेने वाला अशांति का सबसे बड़ा जनक बन बैठा. देश में अशांति सबसे बड़ा दूत बन गया... दूत इसलिए क्योंकि ये विदेशी ताकतों के दूत ही तो हैं जो विदेशी ताकतों के इशारे पर बांग्लादेश को बर्बाद कर रहे हैं.
अमेरिका-पाकिस्तान की चाल में बांग्लादेश बर्बाद
दरअसल, ये आंदोलन अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA और पाकिस्तान की ISI की चाल थी. शेख हसीना ने अमेरिका को बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर नौसैनिक अड्डा बनाने से साफ इनकार कर दिया था. इसके बाद ही CIA ने बांग्लादेश को अस्थिर करने का खाका तैयार किया.
ISI ने चरमपंथी ताकतों को चिटगांव में ट्रेनिंग दी, सोशल मीडिया के ज़रिए छात्रों को भड़काया और $10 मिलियन फंड NGO के ज़रिए आंदोलन में झोंक दिए... नतीजा ये हुआ कि शेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी और बांग्लादेश के हिंदुओं पर कहर टूट पड़ा. बांग्लादेश में सिर्फ हिंदू ही नहीं वहां रह रहे सभी नागरिकों के भविष्य को अंधकार में डाल दिया है.
यूनुस की चुप्पी और तुष्टिकरण
मुहम्मद यूनुस को इस संकट के बीच अंतरिम सरकार का मुखिया बना दिया गया. उम्मीद थी कि वे लोकतंत्र लौटाएंगे, लेकिन उन्होंने उल्टा किया.
- 52 ज़िलों में हिंदू समुदाय पर 2,010 हमले हुए.
- 69 मंदिर तोड़े गए, 157 घर जला दिए गए और 5 हिंदुओं की हत्या हुई.
- फिर भी यूनुस की सरकार चुप रही. न कोई कड़ी कार्रवाई, न ही किसी दोषी की सज़ा.
लोकतंत्र नहीं, नई तानाशाही
यूनुस ने न सिर्फ दंगाइयों को माफ किया, बल्कि सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने के लिए नया कानून भी ले आए, जिससे विरोध करने वालों की आवाज़ दबाई जा सके. ढाका की सड़कों पर लाखों लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन यूनुस जापान दौरे पर व्यस्त हैं.
बीएनपी के नेता तारीक रहमान, जो देश छोड़ चुके हैं, अब वर्चुअल भाषणों में सरकार को निशाने पर ले रहे हैं. बांग्लादेश की सेना तक दिसंबर में चुनाव की मांग कर चुकी है.
इस्लामी कट्टरता को खुली छूट
जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों को दोबारा सिर उठाने का मौका मिला है. हिंदुओं पर हमले, उदार मुसलमानों को धमकियां और सोशल मीडिया पर घृणा— ये सब इस अंतरिम सरकार के दौरान हो रहा है.
भारत की भूमिका और नैतिक मजबूती
भारत ने शेख हसीना को शरण देकर एक बार फिर यह साबित किया कि वह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध है. हसीना ने बांग्लादेश की संप्रभुता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा की थी, कट्टरपंथ को रोका और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाया. लेकिन यूनुस के आने से बांग्लादेश फिर से कट्टरपंथ और विदेशी हस्तक्षेप की आग में जल रहा है.
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