नेपाल में उथल-पुथल और राजनीतिक संकट का भारत पर कैसे पड़ सकता है असर? खतरे में निवेश और कनेक्टिविटी योजनाएं
नेपाल में हालिया राजनीतिक संकट और पीएम केपी शर्मा ओली के इस्तीफे से भारत की आर्थिक और रणनीतिक चिंताएं गहरी हो गई हैं. यह अस्थिरता भारत-नेपाल व्यापार, ऊर्जा परियोजनाओं और कनेक्टिविटी योजनाओं पर सीधा असर डाल सकती है. साथ ही, चीन के बढ़ते प्रभाव और सीमा सुरक्षा को लेकर भारत की चुनौतियां और बढ़ गई हैं.

Nepal protests impact on India: नेपाल में हाल ही में हुई हिंसक विरोध प्रदर्शनों और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के 9 सितंबर 2025 को इस्तीफे ने भारत की आर्थिक और रणनीतिक चिंताओं को गहरा कर दिया है. भारत और नेपाल के बीच न सिर्फ व्यापार और ऊर्जा सहयोग गहरा है, बल्कि नेपाल में स्थिरता भारत की सुरक्षा और चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भी बेहद अहम मानी जाती है.
व्यापार पर खतरा
नेपाल में जारी अस्थिरता सबसे पहले भारत-नेपाल व्यापार पर असर डाल सकती है.
- भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. नेपाल की पेट्रोलियम, वाहन, मशीनरी और खाद्य वस्तुओं जैसी बड़ी ज़रूरतें भारत से पूरी होती हैं.
- रक्सौल-बीरगंज और सोनौली-भैरहवा जैसे बॉर्डर पॉइंट्स पर अस्थिरता की वजह से माल ढुलाई में रुकावट आ सकती है, जिससे भारतीय निर्यातकों और नेपाली उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान होगा.
- नेपाल में 150 से ज्यादा भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं, जो वहां के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लगभग 35% हिस्सा हैं. राजनीतिक उथल-पुथल से इनकी परियोजनाएं अटक सकती हैं और भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है.
ऊर्जा सहयोग पर खतरा
भारत-नेपाल ऊर्जा सहयोग हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है.
- कई बड़े हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स भारत की कंपनियों के साथ साझेदारी में चल रहे हैं.
- भारत की योजना है कि अगले 10 वर्षों में नेपाल से करीब 10,000 मेगावॉट बिजली हासिल की जाए.
- लेकिन मौजूदा अस्थिरता इन परियोजनाओं को रोक सकती है. डोडोधारा-बरेली और इनरुवा-पूर्णिया जैसी ट्रांसमिशन लाइन परियोजनाएं भी देर से पूरी होंगी.
क्षेत्रीय स्थिरता पर असर
नेपाल की आंतरिक उथल-पुथल भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा और भू-राजनीति को भी प्रभावित कर सकती है.
- राजनीतिक अस्थिरता से चीन को नेपाल में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिल सकता है.
- लंबी और खुली भारत-नेपाल सीमा पर अपराध, तस्करी और सुरक्षा खतरे बढ़ सकते हैं.
- पर्यटन, धार्मिक यात्राएं और वहां काम कर रहे नेपाली नागरिकों से आने वाले रेमिटेंस पर भी असर पड़ सकता है.
- रेलवे और इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट जैसी भारत-नेपाल कनेक्टिविटी परियोजनाएं धीमी पड़ सकती हैं.
आगे का रास्ता
हालांकि हालात चुनौतीपूर्ण हैं, लेकिन कूटनीतिक प्रयासों से स्थिरता बहाल की जा सकती है.
- अगस्त 2025 में हुई उच्च स्तरीय वार्ताओं में ऊर्जा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया था.
- भारत लगातार पड़ोस पहले (Neighbourhood First) नीति पर काम कर रहा है.
- यदि दोनों देश साझा आर्थिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करें, तो मौजूदा संकट के असर को कम किया जा सकता है.
कुल मिलाकर, नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है. व्यापार से लेकर ऊर्जा और कनेक्टिविटी तक, हर क्षेत्र पर इसका असर पड़ सकता है. अब भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह नेपाल को स्थिर करने के लिए कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर किस तरह कदम उठाता है.
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