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प्रदर्शन, हिंसा और ओली का इस्तीफा, फिर चर्चा में लौटी राजशाही! क्या राजा की हो सकती है वापसी?

नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भड़के प्रदर्शनों ने राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया है. हिंसक झड़पों में 19 लोगों की मौत के बाद पीएम केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा. इस अशांति के बीच राजशाही बहाली की मांग तेज हो गई है और पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह एक बार फिर सुर्खियों में हैं.

Nepal protests 2025: नेपाल की सड़कों पर साल 2025 का ज़्यादातर समय अशांति से भरा रहा. मार्च में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों ने धीरे-धीरे पूरे देश को हिला दिया. राजधानी काठमांडू से उठी यह लहर अब प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे तक पहुंच गई है. इन प्रदर्शनों में जनता की मुख्य मांग थी—राजशाही की बहाली और नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करना.

भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन बना चिंगारी

पिछले हफ्ते हालात और बिगड़ गए, जब सरकार पर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोप लगे. इसके बाद सरकार ने अचानक सोशल मीडिया ऐप्स पर बैन लगाने का ऐलान कर दिया. यही फैसला युवाओं के गुस्से का कारण बन गया और हजारों लोग फिर सड़कों पर उतर आए.

पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर सख्ती दिखाई, जिसमें अब तक 19 लोगों की मौत हो चुकी है. बढ़ते दबाव को देखते हुए सरकार को सोशल मीडिया बैन वापस लेना पड़ा, लेकिन तब तक हालात हाथ से निकल चुके थे. जनता का गुस्सा लगातार बढ़ता गया और आखिरकार मंगलवार को ओली को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.

नेपाल का राजपरिवार अब कहां है?

नेपाल की राजनीति में उथल-पुथल के बीच लोग एक बार फिर राजशाही की ओर उम्मीद से देखने लगे हैं. 2008 में राजशाही समाप्त होने के बाद से पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह निजी नागरिक के तौर पर जीवन बिता रहे हैं.

ज्ञानेंद्र शाह – उनका मुख्य निवास काठमांडू के निर्मल निवास में है, लेकिन 2024 में वे कुछ समय के लिए शहर से बाहर नगरजुन हिल्स स्थित एक हंटिंग लॉज 'हेमंतबास' में रहने लगे.

क्वीन मदर रत्ना – वे अब भी पूर्व राजमहल परिसर के महेंद्र मंजिल में रहती हैं.

युवा पीढ़ी (पूर्व राजकुमार-राजकुमारियां) – पूर्व क्राउन प्रिंस पारस और प्रिंसेस हिमानी की बेटियां, कृतिका शाह और पूर्णिका शाह, 2008 में ही सिंगापुर चली गई थीं और वहीं पढ़ाई कर रही हैं.

मार्च 2025 में ज्ञानेंद्र शाह काठमांडू लौटे तो हजारों समर्थकों ने उनका ज़ोरदार स्वागत किया. मई में उन्होंने अपने परिवार के साथ नारायणहिटी राजमहल का दौरा किया और पूजा-अर्चना की.

'राजा आओ, देश बचाओ' – राजशाही की वापसी की मांग

मार्च में जब काठमांडू में प्रो-मोनार्की (राजशाही समर्थक) प्रदर्शन हुए तो भीड़ ने ज़ोरदार नारे लगाए— 'राजा आओ, देश बचाओ.' इन प्रदर्शनों में ओली के इस्तीफे की भी मांग उठी। भीड़ के कुछ लोग राजमहल परिसर में घुसने की कोशिश करने लगे, जिससे पुलिस झड़प में 2 लोगों की मौत और 100 से ज्यादा घायल हो गए.

मई में नवराज सुवेदी के नेतृत्व में पूरे नेपाल में राजशाही समर्थक आंदोलन छेड़ा गया. सरकार ने हालात काबू में रखने के लिए नारायणहिटी पैलेस म्यूजियम और कई अहम जगहों पर जुलाई तक प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी.

ओली समर्थकों और राजशाही समर्थकों में टकराव

सत्ताधारी सीपीएन-यूएमएल पार्टी ने रिपब्लिकन सिस्टम (गणतंत्र) बचाने के लिए जवाबी प्रदर्शन किए. खासकर गणतंत्र दिवस पर यह भिड़ंत और तेज हो गई.

इसी बीच पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की लगातार सार्वजनिक मौजूदगी ने लोगों के बीच राजशाही की वापसी की उम्मीदें और मज़बूत की हैं. हालांकि उन्होंने अब तक सीधे तौर पर सिंहासन पर वापसी की इच्छा नहीं जताई है, लेकिन उनकी मौजूदगी समर्थकों को लगातार ऊर्जा दे रही है.

राजनीति में आरपीपी (राष्ट्रिय प्रजातन्त्र पार्टी) की भूमिका

नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी (RPP) लंबे समय से राजशाही की पक्षधर रही है. हालांकि, पार्टी यह कहती है कि राजशाही को देश की रक्षा और राष्ट्रीय हितों की संरक्षक शक्ति के रूप में देखा जाए, न कि शासन करने वाली ताकत के रूप में.

कुल मिलाकर, नेपाल इस समय राजनीतिक अस्थिरता के ऐसे दौर से गुजर रहा है जिसने न केवल ओली की सत्ता छीन ली, बल्कि राजशाही बहाली की बहस को भी फिर से ज़िंदा कर दिया है. अब सबकी निगाहें इस पर हैं कि क्या नेपाल दोबारा गणतंत्र से राजशाही की ओर लौटेगा, या फिर मौजूदा व्यवस्था को किसी तरह बचाया जाएगा.

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