ठाकरे ब्रदर्श का मिलने से टेंशन में एकनाथ शिंदे, अस्तित्व की लड़ाई में बिखर सकती है शिंदे सेना
मराठी बनाम हिंदी विवाद अब सिर्फ भाषा का मुद्दा नहीं, बल्कि शिवसेना की विरासत, ठाकरे परिवार की साख और शिंदे के अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है. आगामी बीएमसी चुनाव इस टकराव की अग्निपरीक्षा होंगे और यह देखना दिलचस्प होगा कि मराठी जनभावनाओं का फायदा कौन उठाता है — ठाकरे ब्रदर्स या शिंदे गुट?

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच एक सियासी ड्रामा सामने आया, जिसने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है. शिवसेना के नेता और राज्य के परिवहन मंत्री प्रताप सरनाईक मंगलवार को ठाकरे परिवार की विरोधी पार्टी मनसे (MNS) के प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे, लेकिन वहां मौजूद मनसे कार्यकर्ताओं ने उन्हें गद्दार कहकर मंच से नीचे उतार दिया और बाहर निकाल दिया. यह घटना तब हुई जब मनसे मराठी भाषा के समर्थन में शांतिपूर्ण मार्च निकाल रही थी. ऐसे में एकनाथ शिंदे के खेमें में टेंशन की बात है.
प्रताप सरनाईक की मौजूदगी ने इस बात को हवा दी कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे खुद भी इस 'मराठी बनाम हिंदी' के मुद्दे पर खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं. मराठी मानुष की राजनीति शिवसेना की पहचान रही है, जिसे अब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों सड़कों पर दोबारा जिंदा कर रहे हैं. जबकि एकनाथ शिंदे बीजेपी और एनसीपी के साथ गठबंधन में बंधे हैं, जो उन्हें मराठी विरोधी ठहराने के लिए विपक्ष को एक मजबूत मौका देता है.
शिंदे खेमे में बेचैनी
शिंदे को डर है कि यदि वो इस भावनात्मक मुद्दे से दूर रहे तो राज और उद्धव की जोड़ी बाल ठाकरे की विरासत को हथियाकर उनकी राजनीतिक जमीन खिसका सकती है. यही वजह है कि मंत्री सरनाईक प्रदर्शन में पहुंचे, चाहे वो उनके खुद के दल की जानकारी में हो या नहीं.
ठाकरे परिवार की 'रियूनियन' शिंदे के लिए सिरदर्द
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का करीब दो दशक बाद साथ आना शिंदे गुट के लिए सबसे बड़ा झटका है. 2017 में जहां शिवसेना (तब एकजुट) बीएमसी चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, वहीं अब विभाजित शिवसेना को नए चुनाव में कड़ी चुनौती मिलने वाली है.
लोकसभा चुनाव 2024 में भी उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने 9 सीटें जीतकर शिंदे गुट को पीछे छोड़ दिया था. अब जब मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव नजदीक हैं, ठाकरे परिवार की एकता और मराठी अस्मिता का मुद्दा शिंदे की रातों की नींद उड़ाने को काफी है.
शिंदे का राज ठाकरे प्रेम और उद्धव पर वार
ठाकरे भाइयों की संयुक्त रैली के बाद शिंदे ने जहां उद्धव पर सत्ता की भूख का आरोप लगाया, वहीं राज ठाकरे की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने मराठी भाषा के मुद्दे को सलीके से उठाया. शिंदे लगातार राज ठाकरे को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अब जब राज उद्धव के साथ खड़े हैं, शिंदे के पास बहुत सीमित विकल्प हैं.
'बाल ठाकरे की तस्वीरें हटा दो'
शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने शिंदे पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि अगर वे अब भी बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे जैसे नेताओं के साथ हैं, जिन्होंने हिंदी थोपने वाली टिप्पणी की, तो उन्हें बाल ठाकरे की तस्वीरें अपने दफ्तरों से हटा देनी चाहिए। राउत ने यह भी कहा कि अगर शिंदे इस मामले पर प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह से बात नहीं कर सकते तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए.
ये भी देखिए: नीतीश सरकार का चुनावी मास्टरस्ट्रोक! अब सिर्फ स्थानीय महिलाओं को मिलेगा 35% सरकारी नौकरी का आरक्षण