इज़रायल-ईरान युद्ध से भारत को क्या सीखना चाहिए? खुफिया जाल और भविष्य की लड़ाइयों की तैयारी
इज़रायल-ईरान युद्ध भले ही अभी थमा हो, लेकिन इससे भारत के लिए कई अहम सबक सामने आए हैं. सबसे बड़ा संदेश यह है कि अब युद्ध सिर्फ सीमा पर नहीं, आपके घर के भीतर भी लड़ा जा सकता है और वह भी तब, जब दुश्मन आपके सिस्टम में गहराई तक घुस चुका हो.

इजरायल और ईरान के बीच छिड़े हालिया युद्ध को लेकर भले ही अभी ठोस निष्कर्ष निकालना जल्दबाज़ी हो लेकिन कुछ बेहद ज़रूरी सबक सामने ज़रूर आए हैं. ये सबक खासतौर पर भारत के लिए क्योंकि 'ऑपरेशन सिंदूर' अभी खत्म नहीं हुआ है और पाकिस्तान से आतंक का सिलसिला तब तक नहीं रुकेगा जब तक वहां सेना सत्ता की बागडोर थामे हुए है.
ऐसे में यह युद्ध सिर्फ दो देशों के बीच की भिड़ंत नहीं बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए भी रणनीतिक चेतावनी है, खासतौर पर भारत जैसे देशों के लिए जो कई मोर्चों पर सुरक्षा और कूटनीति की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में आइए समझते हैं कि आखिर इजरायल और ईरान युद्ध से भारत को क्या सीखना चाहिए...
1. गहराई से फैली खुफिया ताकत का सबक
इस युद्ध की सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इजरायल के पास ईरान की जमीन पर मौजूद सटीक और लाइव खुफिया जानकारी थी. ईरान के नतान्ज़ और फोर्डो जैसे परमाणु ठिकानों पर हमला करना मुश्किल नहीं था, लेकिन 14 वैज्ञानिकों को टारगेट करना और उन्हें विस्फोटक ड्रोन से मार गिराना यह दिखाता है कि इज़राइल के पास ईरान के अंदर बेहद गहरे जमीनी जासूसी नेटवर्क मौजूद थे. यह कोई रातोंरात खड़ा हुआ ऑपरेशन नहीं था बल्कि वर्षों की रणनीतिक योजना और धैर्य का परिणाम था.
भारत के लिए खुफिया तैयारियां आज भी सीमा सुरक्षा और तकनीकी निगरानी तक सीमित हैं. भारत को अब इनसे आगे बढ़कर भीतर की सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा, जहां दुश्मन एजेंसियों का निशाना हमारे जासूस, संवेदनशील संस्थानों में काम करने वाले लोग और यहां तक कि वरिष्ठ अधिकारियों तक हो सकता है. इसलिए आने वाले सालों में भारत को सिर्फ बॉर्डर सिक्योरिटी नहीं, आंतरिक खुफिया सुरक्षा और साइबर डोमेन में भी निवेश बढ़ाना होगा.
2. 'ऑपरेशन सिंदूर' अब एक इंटरनेशनल टेम्पलेट
एक और चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिका का 'Midnight Hammer' ऑपरेशन, भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' से बेहद मिलता-जुलता रहा. डोनाल्ड ट्रंप ने केवल परमाणु ठिकानों पर हमले किए, ईरान से बातचीत के संकेत दिए और चीन को तेल खरीदने की छूट देकर तीसरे पक्षों को युद्ध से दूर रखा.
यह पूरी रणनीति युद्ध को जल्द से जल्द खत्म करने की थी और अमेरिकी इतिहास को देखते हुए यह काफी असामान्य था. ट्रंप ने इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर दबाव भी बनाया कि वो और आगे स्ट्राइक न करें, नहीं तो अमेरिका अपने मिसाइल डिफेंस सिस्टम से समर्थन हटा सकता है. यह 'मौन धमकी' इज़राइल को पीछे हटने पर मजबूर कर गई.
भारत के लिए संदेश साफ है कि रणनीति सिर्फ युद्ध जीतने की नहीं होती, युद्ध को समय पर रोकने और राजनीतिक संतुलन बनाने की भी होती है.
3. बिना सीमा पार किए दबदबा
इस युद्ध में एक और दिलचस्प पहलू था - 'स्टैंड-ऑफ वॉर', यानी बिना दुश्मन देश की सीमा में प्रवेश किए उसे घुटनों पर लाना. अमेरिका ने बी-2 स्टील्थ बॉम्बर, फाइटर जेट्स और एक सबमरीन से लॉन्च की गई क्रूज़ मिसाइलों से हमला किया और वो भी ऐसे कि ईरान को पहले से भनक तक नहीं लगी. सभी हमले ईरान के पश्चिमी हिस्से में किए गए ताकि विमानों को दुश्मन के इलाके में प्रवेश न करना पड़े.
भारत के पास ऐसी तकनीकें और बेस नहीं हैं, लेकिन सबक यह है कि भविष्य के युद्ध अब फिजिकल बॉर्डर पार करने वाले नहीं रहेंगे. भारत को अपने स्पेस प्रोग्राम और सैटेलाइट निगरानी क्षमताओं को युद्धस्तर पर अपग्रेड करना होगा ताकि किसी भी दुश्मन की हरकत पर सटीक और तेज जवाब दिया जा सके.
4. नैरेटिव कंट्रोल यानी युद्ध की कहानी पर कब्जा
इस युद्ध का सबसे अनदेखा लेकिन सबसे प्रभावी हथियार था—नैरेटिव कंट्रोल. पूरे युद्ध के दौरान दुनिया भर के मीडिया में बस ईरान की तबाही की तस्वीरें छाईं रहीं, जबकि इज़राइल में हुए नुकसान को बेहद छुपाकर रखा गया.
यहां तक कि बीयरशेबा में ईरानी मिसाइल हमले में 3 इमारतें ढह गईं, और 4 लोगों की मौत की बात हुई, लेकिन इज़राइल ने न तो विस्तृत रिपोर्ट दी और न ही विपक्ष ने सरकार पर कोई सवाल खड़े किए.
युद्ध के बाद ही विपक्ष ने नेतन्याहू के भ्रष्टाचार मामलों में ट्रंप के हस्तक्षेप को लेकर आलोचना की. भारत को इससे सीख लेनी चाहिए कि रणनीतिक मामलों में मीडिया और नैरेटिव को नियंत्रित रखना कितना जरूरी है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में आतंकवाद पर दोहरे मापदंडों की आलोचना करना इसी दिशा में एक सशक्त कदम था.
5. कश्मीर मॉडल बनाम गाजा मॉडल
जहां इज़रायल ने गाजा पट्टी में लंबे समय से संघर्ष को हथियारों के ज़रिए सुलझाने की कोशिश की, वहीं भारत ने कश्मीर में बिना अधिक बल प्रयोग के धैर्य और राजनीतिक इच्छाशक्ति से हालात को सुधारा.
अनुच्छेद 370 के हटने के बाद भारत ने जम्मू-कश्मीर को भारत की मुख्यधारा में शामिल करने की दिशा में कई सफल प्रयास किए हैं. यह एक ऐसा मॉडल है जिसे इज़रायल जैसे देशों को समझना और अपनाना चाहिए.
लेकिन इसके विपरीत, भारत को इज़रायल से यह सीखना होगा कि भविष्य के युद्ध कब शुरू होंगे. यह आपको नहीं आपके दुश्मन को तय करना होगा और तब दुश्मन आपके गेट के भीतर होगा, न कि सीमा पर.
(NOTE: ये कई एक्सपर्टस और युद्ध के साथ जियोपॉलिटिक्स पर पकड़ रखने वाले दिग्गजों की राय है, जिसे लेकर खबर पॉडकास्ट पूष्टि नहीं करता है.)
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