सामने पंचायत, पीछे भीड़ और बीच में सिंदूर! बिहार में पति की मौजूदगी में पत्नी ने रचाई शादी, प्रेमी बोला - तीसरा बेटा तो मेरा...
Bihar: बिहार के वैशाली ज़िले से एक चौंकाने वाला प्रेम प्रसंग सामने आया है, जहां एक तीन बच्चों की मां को प्रेमी के साथ आपत्तिजनक हालत में रंगे हाथ पकड़ा गया. पंचायत बैठी, पति मौजूद रहा और प्रेमी ने सबके सामने उसकी मांग भर दी. पत्नी ने खुलासा किया कि सबसे छोटा बच्चा उसी प्रेमी का है. अब बच्चों की कस्टडी को लेकर नया बवाल खड़ा हो गया है. ये सच्ची कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं!

Bihar: गांव की गलियों में जब दोपहर की धूप तप रही थी और लोग अपने-अपने घरों में आराम फरमा रहे थे, तभी एक धमाकेदार खबर ने पूरे चकसिकंदर मंसूरपुर को हिला कर रख दिया. रमेश राम की पत्नी पारो देवी को गांव वालों ने किसी गैर मर्द के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ लिया.
वो मर्द और कोई नहीं, गांव का ही जाना-पहचाना चेहरा रूपेश राम था. गांव में बात फैलते देर न लगी... पंचायत बुलाओ! की आवाज़ हर ओर गूंज उठ और देखते ही देखते, गांव के चौपाल में भीड़ इकट्ठा हो गई—मानो कोई बड़ा फैसला होने जा रहा हो. पारो खामोश खड़ी थी, लेकिन उसके चेहरे पर डर नहीं था... जैसे वो पहले से सब सोच चुकी हो.
सिंदूर, पंचायत और पति की इजाज़त में हुआ इश्क का इकरार
जब माहौल गरमाया तो खुद रूपेश राम ने पंचायत बुलाने की पेशकश की. सबके सामने, रमेश राम—पारो के पति—भी खड़ा था. लेकिन जो हुआ, उसने सबको हैरान कर दिया.
रूपेश ने अपने जेब से सिंदूर निकाला और सबके सामने पारो की मांग में भर दिया. मानो पूरी दुनिया को बता रहा हो— अब ये मेरी है! भीड़ सन्न थी. लेकिन उससे ज़्यादा चौंकाने वाला था रमेश का जवाब— मुझे कोई ऐतराज़ नहीं. अगर मेरी बीवी अब इसके साथ जाना चाहती है तो जाए... लेकिन मेरे तीन बच्चों को यहीं छोड़ दे.
जब पारो ने खोले राज़...
अब बारी थी पारो की. वो चुप नहीं रही. उसने सीधा कह दिया— सब बच्चे इसके नहीं हैं... पर सबसे छोटा बच्चा, रूपेश का है. ये सुनकर भीड़ फिर सन्न रह गया.
रूपेश ने भी सिर हिलाकर मान लिया. कहा, 'हां, मैंने इसकी मदद की थी. जब रमेश कुछ कमाकर नहीं लाता था, तब मैंने इसे 20 से 30 हजार रुपये दिए. राशन-पानी भी दिया. मेरे बिना ये कैसे चलती?'
उनका रिश्ता अचानक शुरू नहीं हुआ था. दोनों के घर आधा किलोमीटर की दूरी पर थे. रोज़ की मुलाकातें धीरे-धीरे मोहब्बत में बदल गईं और मोहब्बत उस मोड़ तक पहुंच गई जहां पंचायत भी रोक न सकी.
अब किसके साथ रहेंगे बच्चे?
पेंच यहां फंसा... रमेश कहता है, 'गरीब हूं, पर बच्चों को खुद पालूंगा.' और रूपेश कहता है, 'अगर मेरी बीवी अब पारो है, तो बच्चे भी मेरे ही होंगे.'
गांव में कानाफूसी चल रही है. कोई कहता है, 'रूपेश पहले भी कई औरतों को फंसा चुका है.' तो कोई बोलता है, 'कम से कम रमेश ने मर्दानगी दिखाई, बिना झगड़े के छोड़ दिया.'
कहानी का अंत… या शुरुआत?
पंचायत ने अंतिम फैसला नहीं सुनाया है. बच्चे किसके पास रहेंगे, ये आगे तय होगा. लेकिन एक बात तय हो चुकी है—चकसिकंदर मंसूरपुर की इस प्रेम गाथा ने गांव-गांव, शहर-शहर चर्चा छेड़ दी है. कभी कभी मोहब्बत सिर्फ दिल की बात नहीं होती, वो पंचायत के सामने भी साबित करनी पड़ती है... और मांग का सिंदूर गवाही बन जाता है.