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साइकिल से लेकर शराबबंदी और अब ₹2 लाख तक... कैसे नीतीश कर रहे महिला वोट बैंक को साधने की तैयारी?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना शुरू की है. इस योजना के तहत हर योग्य महिला को कारोबार शुरू करने के लिए ₹10,000 और सफल कारोबार पर ₹2 लाख तक की पूंजी दी जाएगी. यह पहल नीतीश की राजनीति में महिलाओं को केंद्र में रखने की उनकी लंबे समय से चली आ रही रणनीति को और मजबूत करती है.

Bihar Assembly Election 2025: बिहार की सियासत में इन दिनों सबसे चर्चित योजना है – मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना. इस योजना का वादा जितना सीधा है, उसका असर उतना ही गहरा हो सकता है: आज ₹10,000 और कल ₹2 लाख. बिहार के हर घर की एक महिला को व्यवसाय शुरू करने के लिए बीज धन मिलेगा, बशर्ते कि वह और उसका पति आयकर दाता न हों. छह महीने बाद अगर उनका कारोबार सफल साबित होता है, तो राज्य सरकार ₹2 लाख तक की पूंजी देगी.

7 सितंबर से आवेदन शुरू हो चुके हैं और इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं की आत्मनिर्भरता और उद्यमिता को बढ़ावा देने वाला बड़ा कदम बताया है. लेकिन इसकी राजनीति भी साफ है – यह योजना उसी महिला मतदाता वर्ग को और मजबूत करने का प्रयास है जिसने बीते दो दशकों से नीतीश का साथ कभी नहीं छोड़ा.

महिला वोट बैंक को साधने की तैयारी

2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से नीतीश कुमार ने महिलाओं को अपनी सबसे स्थायी राजनीतिक पूंजी बना लिया. चाहे सामाजिक कल्याण हो, शिक्षा, पुलिस-नौकरियों में आरक्षण, शराबबंदी या पंचायतों में 50% आरक्षण – हर फैसले ने महिलाओं को सीधे तौर पर प्रभावित किया.

2016 में शराबबंदी लागू कर नीतीश ने महिलाओं की आवाज़ सुनी। आलोचना चाहे कितनी भी हुई, लेकिन राजनीतिक लाभ साफ था.

बेटियों को साइकिल, यूनिफॉर्म और छात्रवृत्ति मिली। जीविका (JEEViKa) जैसे महिला स्वयं सहायता समूह आज 1.4 करोड़ से ज़्यादा महिलाओं को जोड़ चुके हैं.

इन पहलों ने नीतीश की छवि उस नेता के रूप में गढ़ी जो महिलाओं को सिर्फ वोट बैंक नहीं, बल्कि परिवार और समाज की धुरी मानते हैं.

मतदान केंद्र पर महिलाओं की ताक़त

साल 2010 से बिहार में महिलाएं लगातार पुरुषों से अधिक मतदान कर रही हैं। 2015 विधानसभा चुनाव में यह अंतर लगभग 4% तक पहुंच गया था. 2020 में भी महिलाओं ने भारी संख्या में मतदान कर नीतीश की वापसी तय की.

ग्रामीण बिहार की लंबी कतारों में खड़ी महिलाएं अब किंगमेकर मानी जाती हैं. यही वजह है कि नीतीश बार-बार महिलाओं के नाम पर अपनी राजनीति की बुनियाद रखते हैं, चाहे गठबंधन बीजेपी के साथ हो या आरजेडी-कांग्रेस के साथ.

महिला रोज़गार योजना: राजनीति या कल्याण?

नई योजना नीतीश की उसी नीति का विस्तार है.

₹10,000 का तत्काल अनुदान – महिलाओं को कारोबार शुरू करने की हिम्मत देता है.

₹2 लाख की पूंजी – सफल कारोबार को बड़े स्तर तक ले जाने का मौका.

लक्ष्य – महिलाएं न केवल आत्मनिर्भर हों, बल्कि अपने परिवार की अर्थव्यवस्था भी संभालें.

लेकिन चुनावी संदर्भ में इसे केवल आर्थिक योजना नहीं, बल्कि एक राजनीतिक दांव माना जा रहा है – महिलाओं के भरोसे एक और बार सत्ता की सीढ़ी चढ़ने का प्रयास.

स्थानीय नौकरियों में डोमिसाइल क्लॉज.

नीतीश ने हाल ही में सरकारी नौकरियों में डोमिसाइल पॉलिसी भी लागू की है. इसका मकसद बिहार के युवाओं को प्राथमिकता देना है. हालांकि आलोचकों का कहना है कि यह बाहर के उम्मीदवारों के लिए बहिष्कारी राजनीति है.

फिर भी, महिलाओं और युवाओं को यह फैसला पसंद आ सकता है क्योंकि यह उन्हें बाहरी प्रतिस्पर्धा से बचाने का आश्वासन देता है.

चुनावी परीक्षा अक्टूबर में

अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में दांव बड़ा है. बीजेपी के साथ नीतीश का रिश्ता तनावपूर्ण है, आरजेडी अपनी ताक़त दिखाने में जुटा है और जनता महंगाई व कानून-व्यवस्था को लेकर नाराज़ भी है.

ऐसे में मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना सिर्फ आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि एक राजनीतिक जुआ है. अगर पैसा समय पर पहुंचा और SHG नेटवर्क ने इसे ज़मीन पर उतारा, तो एक बार फिर नीतीश सत्ता में लौट सकते हैं – महिलाओं की मदद से.

बिहार की राजनीति में जाति हमेशा से सबसे बड़ी पहचान रही है, लेकिन नीतीश कुमार ने इसे चुनौती देकर महिलाओं को केंद्र में रखा. उनकी नीतियां सिर्फ कल्याणकारी नहीं, बल्कि चुनावी गणित का हिस्सा भी हैं. साइकिल से लेकर शराबबंदी और अब ₹2 लाख की रोज़गार योजना तक – नीतीश की राजनीति की धुरी महिलाएं हैं.

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