धमकी, बदनामी, गालियां और 'सेक्स वर्कर' का ठप्पा... जानिए कैसे बांग्लादेश में महिलाओं की आवाज दबा रहे कट्टरपंथी?
Bangladesh Women Rights Crisis: बांग्लादेश में महिलाओं के अधिकारों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. ढाका यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर ज़ोबैदा नसरीन ने खुलासा किया है कि जो भी महिला सुधारों के लिए आवाज़ उठाती है, उसे कट्टरपंथियों से धमकियां मिलती हैं. महिला आयोग की सिफारिशों के खिलाफ बड़े धार्मिक संगठनों ने सरकार पर दबाव बनाया है. महिलाओं को बदनाम किया जा रहा है, उन पर 'सेक्स वर्कर' जैसे आरोप लगाए जा रहे हैं. सरकार और सत्ताधारी पार्टी की चुप्पी इस संकट को और गंभीर बना रही है.

Bangladesh Women Rights Crisis: बांग्लादेश – एक देश जिसे कभी महिला सशक्तिकरण का चमकता सितारा माना जाता था, आज से कुछ महिने पहले ही वहां कि प्रधानमंत्री एक महिला थी, जिनका था शेख हसीना... लेकिन आज उसी धरती पर महिलाओं की आवाज़ को कुचलने का नया खेल खेला जा रहा है.
खेल ऐसा कि न सिर्फ महिलाओं की आवाज को दबाया जा रहा, बल्कि उन्हें साजिश की तरह बदनाम किया जा रहा है, ताकि वह बाहर लोगों के सामने अपना चेहरा भी न दिखा पाएं. ये खुलासा किसी और ने नहीं बल्कि ढाका यूनिवर्सिटी की मशहूर प्रोफेसर और एक्टिविस्ट ज़ोबैदा नसरीन ने किया है. जर्मनी से आई उनकी सच्ची कहानी सुनकर कोई भी सन्न रह जाएगा.
क्या हो रहा है बांग्लादेश में?
प्रो. नसरीन के मुताबिक बांग्लादेश में महिलाओं की हालत बद से बदतर होती जा रही है. जो महिलाएं अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती हैं, उन्हें गालियां दी जा रही हैं, चरित्र हनन किया जा रहा है, धमकियां मिल रही हैं.
कट्टरपंथी ताकतें – जिनमें Hefazat-e-Islam और Jamaat-e-Islami जैसे संगठन शामिल हैं – सरकार पर भारी दबाव डाल रहे हैं कि कोई सुधार न हो, कोई नया हक न मिले, महिलाएं वहीं रहें जहां थीं.
और अफसोस! सरकार भी इस दबाव में झुकती दिख रही है. बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की सरकार ने महिला आयोग बनाया था ताकि महिलाओं के लिए नए कानून, संपत्ति में हिस्सेदारी, सेक्स वर्कर्स के अधिकार जैसे सुधार किए जा सकें. लेकिन जैसे ही ये सिफारिशें सामने आईं – आग लग गई. कट्टरपंथियों ने सरकार को घेर लिया.
महिला आयोग की सदस्याओं को 'सेक्स वर्कर' तक कह दिया!
जी हां! जो महिलाएं इस सुधार के लिए काम कर रही थीं उन्हें सोशल मीडिया और जनसभाओं में 'सेक्स वर्कर' कहकर बदनाम किया जाने लगा ताकि लोग उनकी बात न सुनें. धमकी, बदनामी, गालियां – ये सब उनके हिस्से आई.
ये बदलाव अचानक कैसे?
साल भर पहले बांग्लादेश की सड़कों पर हजारों महिलाएं थीं. रात के अंधेरे में भी वे प्रदर्शन कर रही थीं, कपड़ों की परवाह किए बिना... तब किसी ने कुछ नहीं कहा. लेकिन अब वही महिलाएं सोशल मीडिया पर ट्रोल हो रही हैं, सार्वजनिक जगहों पर ताने सुन रही हैं.
ज़ोबैदा नसरीन का कहना है कि सरकार की चुप्पी इस अपराध की सबसे बड़ी साझेदार है. नेशनल सिटिजन पार्टी (NCP) की सरकार ने एक बार भी इन धमकियों की निंदा नहीं की – और यही खतरनाक है.
महिलाओं के सिर पर डर की तलवार
अब हालात ये हैं कि महिलाएं अपने कपड़े तक बदल रही हैं. ढीले कपड़े, सिर ढकना – ये सब कानून से नहीं बल्कि डर से हो रहा है. समाज की निगाहें हर वक्त पीछा कर रही हैं. खुद नसरीन को एक चिट्ठी मिली – जिसमें लिखा था: 'यूनिवर्सिटी लौटने से पहले सिर ढक लेना.'
ऐसे अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये वही बांग्लादेश है, जिसे महिलाओं की शिक्षा और कामकाजी स्वतंत्रता के लिए दुनिया भर में सराहा जाता था?
सरकार क्यों खामोश है?
सरकार अब तक कोई बयान नहीं दे रही. महिला आयोग की मेंबर्स को धमकियों पर भी चुप्पी. मानवाधिकार संगठनों का कहना है – ये चुप्पी बांग्लादेश में महिला अधिकारों की सालों की मेहनत पर पानी फेर देगी. जो देश कभी महिला नेतृत्व का उदाहरण था, वहां अब महिला होना एक बोझ बनता जा रहा है.
बांग्लादेश की महिलाओं के लिए ये वक़्त आसान नहीं है. जो बोलेंगी – उन पर ताने, गालियां, बदनामी और धमकी... सरकार, धर्म और समाज – तीनों मिलकर उनकी आवाज़ दबा रहे हैं. क्या बांग्लादेश फिर पीछे जा रहा है? क्या वहां महिलाओं के हक़ को कुचलने का दौर लौट आया है?
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