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बलूचिस्तान में 'फेक एनकाउंटर' कर रही पाकिस्तानी सेना, बलूचों ने खोला मोर्चा, उड़ गई मुनीर और शहबाज की नींद

Balochistan VS Pakistan Army: बलूचिस्तान एक बार फिर पाकिस्तान की फौजी दरिंदगी का शिकार बना है. हाल ही में तीन युवाओं – अब्दुल रहमान बुज़दार, फ़रीद बुज़दार और सुल्तान मरी की हत्या कर दी गई. पाकिस्तान की CTD ने मुठभेड़ का दावा किया, मगर परिवारों और मानवाधिकार संगठनों ने इसे सिरे से खारिज करते हुए इसे 'फर्जी एनकाउंटर' बताया.

Balochistan VS Pakistan Army: बलूचिस्तान — वो ज़मीन जिसे भगवान ने सोने से नवाज़ा, लेकिन इंसान ने खून से रंग दिया. यहां के पहाड़ों में कभी बच्चों की हंसी गूंजा करती थी, पर आज सिर्फ गोलियों की गूंज सुनाई देती है और उन गोलियों के पीछे हैं वही — पाकिस्तान की वर्दी वाले दरिंदे, जो ना इंसाफ़ को जानते हैं, ना मानवता को... यानी कि पाकिस्तान की सेना... यानी कि सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ. 

कुछ दिन पहले की ही बात है. एक बार फिर बलूचिस्तान की मिट्टी लहूलुहान हुई. तीन नौजवान — अब्दुल रहमान बुज़दार, फ़रीद बुज़दार और सुल्तान मरी — जिन्हें महीनों पहले जबरन उठा लिया गया था, अब मुठभेड़ के नाम पर मार दिए गए. सरकारी रिकॉर्ड कहता है: आतंकवादी मारे गए... लेकिन उनके परिवार चीख-चीखकर कह रहे हैं: 'हमारे बेटे आतंकवादी नहीं, अगवा किए गए थे, टॉर्चर कर के मारे गए हैं!'

पाकिस्तान का Counter Terrorism Department (CTD) वही पुराना झूठ दोहरा रहा है — मुठभेड़, हथियार बरामद, आतंकवादियों का खात्मा...  लेकिन बलूचों की हकीकत कुछ और कहती है: ये मुठभेड़ नहीं, एक और फेक एनकाउंटर है.

एक और मौत: घौस बख्श की कहानी

अवारान जिले में एक और दिल दहला देने वाली घटना हुई. घौस बख्श नाम के एक नौजवान को सेना के कैंप में तलब किया गया और कुछ घंटों बाद उसकी लाश मिली. शरीर पर टॉर्चर के निशान थे, आंखों में डर नहीं — बल्कि इंकलाब की चिंगारी थी. उसने मौत तो झेली, पर झूठ को सिर नहीं झुकाया.

पाकिस्तान की रणनीति: गुमशुदगी और कत्ल की राजनीति

बलूचिस्तान में कोई नया ज़ख्म नहीं है. हर महीने, सैकड़ों युवाओं को अगवा किया जाता है, दर्जनों की लाशें मिलती हैं. Human Rights Council of Balochistan की रिपोर्ट कहती है कि मार्च 2025 में ही 151 लोग लापता हुए और 80 की हत्या की गई. लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान अब भी लोकतंत्र का झूठा लबादा ओढ़े घूमता है.

भारत की भूमिका: एक नैतिक समर्थन

भारत सरकार ने हमेशा मानवाधिकारों और आत्मनिर्णय के अधिकार की वकालत की है. भारत के लोग बलूचों की पीड़ा को समझते हैं, क्योंकि हमने भी उपनिवेशवाद और अत्याचार झेला है. आज जब बलूच युवा आज़ादी के नारे लगाते हैं, तो दिल्ली की दीवारें भी वो आवाज़ सुनती हैं.

पाकिस्तान के लिए सवाल:

  • कब तक आप अपनी ही जनता को दुश्मन मानते रहेंगे?
  • कब तक जवानों की लाशों पर अपनी सत्ता का महल बनाएंगे?
  • कब तक मुठभेड़ के नाम पर मासूमों को मारेंगे?

बलूचिस्तान जल रहा है, पर उसकी राख से इंकलाब भी उठ रहा है. जब-जब पाकिस्तान बलूचों को कुचलेगा, हर बार कोई अब्दुल रहमान, कोई घौस बख्श उसकी बंदूक से सवाल पूछेगा और भारत उन सवालों की आवाज़ बनेगा. बलूचिस्तान की लड़ाई सिर्फ ज़मीन की नहीं, ज़मीर की है और भारत उस ज़मीर के साथ खड़ा है.

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